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देशी शब्दकोश कोसय-लघु शराव (दे २।४७) । कोसल--नीवी (दे २।३८)। कोसलिअ-भेंट, उपहार (दे २।१२) । कोसलिआ-भेंट (दे २।१२ वृ)। कोसल्ल-उपहार, भेंट-'तं पुरजणकोसल्लं, नरवइणा अप्पियं कुमारस्स'
(उसुटी प ८६) । कोसल्लिअ-भेंट, उपहार (दे २।१२ वृ)। कोसेज्जा-टसर, सूती वस्त्र-कोसेज्जा वडओ भण्णति'
(निचू २ पृ६८; दे २।३३)। कोहलिआ कुष्मांडी, कोहंडा का गाछ (पा ३७२) । कोहल्ली-तापिका, तवा (दे २१४६) । कोहिल्ल-क्रोधी (ओटी पृ २१६) ।
खइय-स्वभाव (स्थाटी प २६२)। खइव स्वभाव-खइव त्ति संवेगशून्यधर्मकथनलक्षणो हेवाक: स्वभावो यस्यां
सा तथा' (स्थाटी प २६२) । खउर–१ तापसों का पात्र-विशेष (बृभा ३४५) । २ खैर आदि का गोंद
(निचू ४ पृ ६७)। ३ नीच-असूयपुत्ता ! खउरपुत्ता ! सुट्ठ अक्कोसामि' (आवहाटी १ पृ १४१)। ४ कलुषित-'दरदट्ठविवण्ण
विदुमरअक्खउरा' (से ५।४७) । ५ व्याप्त (से ६।११)। खउरकढिणय-तापसों का उपकरण-विशेष, जो बांस, शुम्ब आदि द्रव्यों को
अत्यंत कूट-पीसकर कमठ के आकार का बनाया जाता है। उसको बिल्व और भिलावे के रस से लिप्त कर देने पर
उसमें से पानी भी परिस्रवित नहीं होता (नंदीटि पृ१०५)। खउरल्लिय-कलुषित, लिप्त (जीभा ७०५)। खउरित-निर्भत्सित, तिरस्कृत-'खउरिता खरंटिता रोषेणेत्यर्थः'
(निचू २ पृ २६२)। खउरिय-१ कलुषित (बृभा ३७३०) । २ मुण्डित । ३ धवलित
(से १०।४३)।
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