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कोयar -- रजाई (ज्ञा १।१७।२२) |
कोयवी- १ रूई की रजाई (जीभा १७७० ) । २ सिल्हक का सूता ( निभा ४००२) ।
देशी शब्दकोश
कोयहा - रजाई, रूई से भरे हुए कपड़े का बना प्रावरण ( आचूला ५। १४) । कोयासिय- विकसित ( औप १९ ) ।
कोरण - पात्र आदि का मुंह बांधना - भायणस्स मुहकोरणे णिक्कोरणे वा' ( निचू ३ पृ ४७२ ) ।
कोरिल्लय – पुराना, जीर्ण-शीर्ण - 'कोरिल्लएणं धणुणा कोरिल्लयाए जीवाए कोरिल्लएणं उसुणा' (राज ७५६ ) 1
कोल - ग्रीवा, गला ( सू ११५१६; दे २१४५) ।
कोलंब - १ पर्वत का अग्रभाग - गिरिकडकोलंब' (ज्ञा १1१८1१८ ) | २ पात्र विशेष - कटुकोलंबए इ वा ( अनु ३।३७; दे २/४७) | ३ गुफा का प्रान्त भाग ( विपा १।३।६ ) |
कोलक— वनस्पति - विशेष (अंवि पृ २३१) ।
कोलज्जा - नीचे गोल और ऊपर से खाई के आकार का धान्य- कोष्ठक ( आचूला १1८8 ) |
कोलथ-धान्य-विशेष (अंवि पृ २२० ) ।
कोलवाल - डोरा - 'मोत्तियं आइण्णंतो आगासे उक्खिवित्ता तहा णिक्खिवइ जहा कोलवाले पडइ' (आवहाटी १ पृ २८५ ) ।
कोलाहल - १ पक्षियों का कलरव (भ ७।११७; दे २।५०) ।
कोलिक - १ अधम जाति का
मनुष्य - "न व्यत्याम्रेडितं कोलिकपायसवत्' । २ मकड़ी, जाल का कीड़ा
)
(अनुद्वाहाटी पृ (अंवि पृ २३७ ) ।
कोलिज्जा - नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचूला १।८६ पा )
कोलित - तंतुवाय, जुलाहा (नंदीटि पृ १३६ ) । कोलित्त - अलात, अधजली लकड़ी (दे २/४६ ) |
कोलिय - - १ जुलाहा, तन्तुवाय ( नंदी ३८१६; दे २१६५) । वाला कीड़ा, मकड़ा (बृभा १७०७ ; दे २।२५) ।
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कोलियग - जाल बनाने वाला कीड़ा, मकड़ा ( आवचू २ पृ ७२ ) । कोलियापुडग - मकड़ी का जाला - - कोलियापुडगो मक्कडसंताणओ' ( निचू २ पृ ४०७ ) ।
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२ जाल बनाने
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