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देशी शब्दकोश
कोली - मकड़ी (अंवि पृ ६९ ) । कोलीर - हिंगुल, कुरुविन्द ( दे २/४६ ) । कोलेज्जय-नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य- कोष्ठक (आचू पृ ३३६) ।
कोलेज्जा - नीचे से वृत्त और ऊपर से खाई के आकार का धान्य भरने का कोठा (आचूला ११८६ पा ) |
। २ कोयला ( निचू १ ) |
कोल्ल - १ शृगाल ( निभा १३४९ ) कोल्लर - १ हौदा (भटी पृ ७३० ) दे २।४७) ।
कोल्लु - कोल्हू (बृभा ५७५) । कोल्लुक -- कोल्हू (बृटी पृ १६७ ) ।
कोल्लुग - सियार - 'कोल्लुगा णाम सिगाला' (निचू २ पृ १७९) ।
कोल्हाहल -- कुन्दरुन का फल, बिंबीफल ( दे पहिआ कोल्हाहलाइ चुण्टन्ति' (वृ ) ।
। २ पिठर, स्थाली ( औपटी पृ ११२;
कोविआ— शृगाली (दे २१४६ ) |
कोविडाल -- वृक्ष - विशेष (अंवि पृ ६३ ) ।
कोविराल - वृक्ष की एक जाति (अंवि पृ ६३ ) ।
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कोल्हुक - गीदड़ ( आवचू १ पृ ४६५) । कोल्हुग - १ कोल्हू (निचू ४ पृ ४३५) । २ सियार ( उसुटी प १८६ ) । कोल्हूय - १ शृगाल, सियार ( उसुटी प १८६; दे २२६५) । २ कोल्हू, चरखी (दे २।६५) ।
२१३६ ) - ' दट्ठ कुंदी रोट्ठि
कोवीण - एक प्रकार का कल्पवृक्ष जो आभरण देता है ( ति ५६ ) । कोस - १ अंगुलियों एवं अंगुष्ठ को आच्छादित करने वाला जूता (निचू २ पृ८७) । २ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र । ३ समुद्र (दे २।६५) ।
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कोसग - १ उपकरण विशेष (जीभा १७७२ ) । २ नाखूनों की सुरक्षा के लिए अंगूठे और अंगुलियों को आच्छादित करने वाला उपकरण'कोसग नहरक्खट्ठा' (बृभा २८८५) ।
कोसट्ट - आवरण, कोश - " रुहिरे उप्पन्ना किमितो तत्थेव मलेत्ता को सट्टं उत्तरेत्ता' (अनुद्वाचू पृ १५) ।
को सट्टइरिआ - चंडी, पार्वती (दे २।३५) ।
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