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देशी शब्दकोश
आऊर--१ अत्यधिक । २ उष्ण, गरम (दे ११७६) । आऊसिय-प्रविष्ट, संकुचित (ज्ञा ११८७२)। आएस-अतिथि, पाहुना (व्य ६।१)। आओडण-मजबूत करना, दृढ करना (से ६।६) । आओडिम-दबाकर या कूटकर बिठाना, जैसे किसी धातु आदि में मूर्ति या
अक्षर उकेरना,-'आओडिमं जहा रूवओ बिबेण बिबेओ
ओवीलिज्जति' (दअचू पृ ३६)। आओस–सन्ध्या-'आओसे संगारो अमुइ वेलाए निग्गए ठाणं' (ओभा ६१) ।' आंबिली-इमली (व्यभा ६ टी प ८) । आकर-१ भाजन-विशेष-'आकरो नाम गृहस्थ-सम्बन्धि सक्तुभृत
स्थाल्यादिभाजनम्' (आवटि प ६६) । २ भीलों की बस्ती। ३ भीलों का कोट्ट, दुर्ग-'आकरो नाम भिल्लपल्ली भिल्लकोट वा'
(बृटी पृ११०४)। आगत्ति-कूपतुला-कूप से पानी खींचने का साधन (दे ११६३)। आगर-१ भीलों की बस्ती । २ भीलों का गांव या दुर्ग (बृभा ४०३५) । आगल-आगामी काल में होनेवाला-'आगलफलाणि वि मग्गइ त्ति'
(सूचू १ पृ ११८) । आगल्ल-ग्लान-से कम्मण तेण एस आगल्लो' (बृभा ५३२१)। आघतण-वध-स्थान (आवहाटी २ पृ १६६) । आघयण-वध-स्थान-तत्थ णं महं एग आघयणं पासंति' (ज्ञा १।६।२५) । आघवण-कथन (अंत ३१८६)। आधविय-गुरु के पास ग्रहण करना-'आधवियं ति प्राकृतशेल्या छांदसत्वाच्च
गुरोः सकाशादागृहीतम्'। (अनुद्वाहाटी पृ १५) । आचमणिका-भाण्ड-विशेष (अंवि पृ २५५) । आडंबर-पाणजातीय लोगों का यक्ष-विशेष (व्यभा ७ टी प ५५) । आडा-पक्षिणी-विशेष (अंवि पृ ६६)। आडाडा-बलात्कार (दे ११६४) । आडुआलि-मिश्रण (दे ११६६) । आडुआलित्त-मिश्रित (आवहाटी १ पृ २२८) । आडताल--मिश्रित करना, ठंडा करने के लिए हिलाना
(दअचू पृ २८; दे ११६६) ।
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