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देशी शब्दकोश
२६ कच्छल्ल–१ गुल्म-विशेष (प्रज्ञा ११३८।२)। २ खाज रोग से ग्रस्त-'तत्थं
णं पास इ एगं पुरिसं-कच्छुल्लं कोढियं दाओयरियं'
(विपा २७७)। कच्छोटक-लंगोटी धारण करने वाला (भटी प ५०)। कच्छोट्टग-कच्छा, लंगोटी (आवहाटी १ पृ २७६) । कज्ज-कचरा (ओटी प १६२) । कज्जउड-अनर्थ (दे २११७) । कज्जत्थ-कूड़ा-करकट डालने का स्थान, अकुरड़ी-कज्जत्थोकुरटिकास्थानम्'
(ओटी प १६२)। कज्जलमाणी-डूबती हुई (नि १८।१६) । कज्जलावेमाणा-डूबती हुई–'णावं कज्जलावेमाणं पेहाए'
(आचूला ३।२२)। कज्जव–१ तृण आदि का समूह (दे २।११) । २ विष्ठा (वृ)। कज्जवय-कूड़ा-कचरा (अनुद्वा ३४६) । कज्जरी-खजूर का वृक्ष (अंवि पृ ७०) । कज्जोव-उल्का (अंवि पृ २४५) । कज्झाल–सेवाल, एक प्रकार की घास जो जलाशयों में होती है (दे २१८)। कटार–छुरी (प्रा ४/४४५) । कद्र-१ खंड, टुकड़ा (अनुटी प ५) । २ काट, जंग (व्यभा ५ टी प ६) । कटर-१ खंड, अंश-चित्तकट्टरे इ वा' (अनु ३।४०) । २ कढी' में डाला
हुआ घी का बड़ा-'तीमनोन्मिश्रघृतवटिकारूपस्य देशविशेषप्रसिद्धस्य'
(पिटी प १७२)। कट्टरिगा-शस्त्र-विशेष, छुरी (निचू २ पृ ५६) । कट्टारिया–कटार, छुरी (निचू २ पृ ५६) । कट्टारी-क्षुरिका, छुरी (दे २।४) । कट्टित-कटा हुआ (अंवि पृ २५५) । कट्ठ-आभूषण-विशेष, एक प्रकार का हार (अंवि पृ ६५) । कठैसालुक-कंठ का रोग-विशेष (अंवि पृ २०३) । कट्टकरण—खेत-'कट्ठकरणं णाम छेत्तं' (आवहाटी १ पृ १५२) । कट्खोड-आसन-विशेष-भद्दासणं पीढगं वा कट्टखोडो नहट्टिका'
(अंवि पृ १५)।
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