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देशी शब्दकोश कियाडिया-कान का ऊपरी भाग-तं चेल्लगं कियाडियाए घेत्तुं सीसे खडुक्क
दाउं..." (व्यभा १ टी प १३) । किर-सूकर, सूअर (दे २।३०)। किराड-खुदरा माल बेचने वाला व्यापारी (कु पृ १०६) । किराडय-व्यापारी-'जाहि किराडयं उच्छिण्णं मग्गाहि'
(आवहाटी २ पृ २२१) । किरि-ज्येष्ठ, बड़ा-'सिरिओ वि किरि भायनेहेण कोसाए गणियाए
घरमल्लियइ' (उसुटी प ३०)। किरिइरिआ-१ कर्णोपकणिका, एक कान से दूसरे कान गई हुई बात ।
२ कुतूहल (दे २।६१) । किरिकिरिया-बांस आदि की कम्बा से निष्पन्न वाद्य-विशेष
(आचूला १११३)। किरीडय-रेशम का कीड़ा -'किरीडयलाला मलयविसए मयलाणि पत्ताणि
कोविज्जति' (निचू २ पृ ३६६)। किलणी-रथ्या, गली (दे २।३१) । किलिच-बांस की खपची (द ४।सू १८; दे २।११)। किलिम्मिअ-कथित, उक्त (दे २१३२) । किविड-१ खलिहान, अन्न साफ करने का स्थान । २ खलिहान में जो हुआ
हो वह (दे २।६०) । किविडी–१ पार्श्वद्वार । २ घर का पिछला आंगन (दे २१६०) । किविल्लिका-कीट-विशेष (अंवि पृ २५३) । किविल्लिग-क्षुद्र जन्तु (अंवि पृ २२६) । किसोर-घोड़ी का गर्भस्थ बच्चा (निचू ३ पृ ४११) । कोडी-चींटी-'जस्स कीडीओ खायंति उत्तमंग' (आवदी प १६८) । कीर-शुक, तोता (दे २।२१)। कील-१ कंठ-कीलेहि विज्झंति असाहकम्मा'-कीलेषु-कण्ठेषु
(सूटी १ प १२६) । २ स्तोक, अल्प (दे २।२१)। कोलणिआ-रथ्या, गली (दे २१३१)। कोलणी-रथ्या (दे २।३१ वृ)। कीला-नववधू, दुलहिन (दे २१३३)। कुइग-दही के ऊपर का नितरा हुआ पानी-'कूचिका नाम दध्न उपरि
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