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देशी शब्दकोश
द्रवस्वरूपो माथुशब्दतया ख्यातो वस्तुविशेषः, स च किल जीरकादिभिः
संस्कृतोऽतीव स्वादुर्भवति' (आवटि प २४) ।। कुउआ-तुम्बी-पात्र (दे २।१२)-'भिक्खु ! को तुह कुउअं पूरिस्सइ
पिण्डवाएण' (वृ)। कुऊल-१ नीवी, अधोवस्त्र को बांधने का नाड़ा (दे २।३८)। २ पहने हुए
कपड़े का प्रांत भाग, अञ्चल-'कुऊलं परिहितवस्त्रप्रान्त इति
केचित्' (वृ)। कुंकुण- चतुरिन्द्रिय जंतु-विशेष (उ ३६।१४६) । कुंचल-मुकुल, कलिका (दे २।३६) । कंचवीरग-जलयान-विशेष-'कुंचवीरगो सगडपक्खसारिच्छं जलयाणं
___ कज्जति' (निचू ४ पृ ५०)। कुंटल--जादू-टोना (दजिचू पृ २८२)। कुंटलविंटल-१ मन्त्र-तन्त्र का प्रयोग (व्यभा ४१३ टी प ४६)। २ मंत्र- तंत्र से आजीविका चलाने वाला। कुंटार-म्लान (दे २।८०)। कंटि–१ गठरी । २ वस्त्र में बंधा हुआ (दे २।३४) । ३ वस्त्रविशेष । कुंटुल्लिग-बच्चों का खिलौना (सूचू १ पृ ११७ टि)। कंड-१ गोत्र-विशेष (अंवि पृ १४६) । २ बांस से बना हुआ ईख पेरने का
जीर्ण काण्ड (दे २।३३)। कुंडग-तुष मिश्रित चावलों की भूसी-'तुसमुहीकणिया कुक्कसमीसा कुंडग
भण्णति' (निचू २ पृ २३७) । २ कुंडा (अवि पृ ६५)। कुंडरोट्ट-निस्तुषधान्य-'कुंडरोट्टो पुण णितुसा' (निचू २ पृ २३७) । कंडिअ---ग्राम का अधिपति, गांव का मुखिया (दे २१३७)। कंडिअपेसण-ब्राह्मणविष्टि, ब्राह्मण को जबरदस्ती से दी जाने वाली सेवा
(दे २।४३)। कुंडिल्लगा-बच्चों का खिलौना-'कुंडिल्लगा चेडरूव-रमणिका'
(सूचू १ पृ ११८) । कंडक्क-वनस्पति-विशेष (आटी प ५७) । कंडल्लिग-बच्चों का खिलौना (सूचू १ पृ ११८ टि)। कंढ-१ आलसी (उशाटी प १०८) । २ मूर्ख (उसुटी प ३२) । कंढय-१ चुल्ली, चुल्हा । २ छोटा बरतन (दे २।६३)। कुंत--१ ठेका, इजारा-'कुन्तकम्-एतावद् द्रव्यं त्वया देयमित्येवं नियंत्रणया
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