________________
देशी शब्दकोश
५५ उड्डंचग-१ उपहास करने वाला (निभा १०६५) । २ याचक-'उदञ्चका
याचकाः' (बटी पृ १६०)। उड्डंचय-अवहेलना-'वंदणादिसु उड्डंचये करेज्ज' (निचू २ पृ १७२) । उड्डडग-वे भिक्षु जो पाणिपात्र होते हैं (आचू पृ १६९)। उड्डंबालग-कोतवाल-'तत्थ चारियत्ति काऊण उड्डंबालगा अगडे पक्खि
विज्जंति' (आवहाटी १ पृ १३६) । उड्डंस-खटमल (उ ३६।१३७) । उडुण-अंगीकार-तत्थोड्डणं अप्पणो कुणति' (व्यभा ४१३ टी प १८)।
* २ दीर्घ । ३ बैल (दे १११२३)। उड्डष्ट-प्रद्विष्ट (आचू पृ १४३) । उड्डुस-खटमल (दे ११६६) । उड्डहण-१ लोकापवाद (निचू ३ पृ ४६८) । २ चोर (दे १३१०१)। उड्डाअ-उद्गम, उदय (दे ११६१)। उड्डाण-१ प्रतिध्वनि । २ कुरर पक्षी । ३ विष्ठा। ४ अभिमानी । ५ मनोरथ
(दे १२१२८)। उड्डावणक-आकर्षण-'तस्स कड्ढणट्ठाए उड्डावणकं करेति'
(निचू ४ पृ ७६) । उड्डास-संताप, परिताप (दे श६६)। उड्डाह-निन्दा (पिनि ४१४) । उड्डिाहरण-छुरी के अग्रभाग पर रखे हुए फूल को पांव की अंगुलियों से
लेकर ऊपर उछलना (दे १११२१)। उड्डिय-१ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ-'अस्सेण हेसियं पट्ठी च उड्डिया'
(निचू ४ पृ ३४३) । २ बेचने के लिए रखना
(आवहाटी १ पृ२६४) । उड्डिहिअ-ऊपर फेंका हुआ (पा ५१७) । उड्डय-डकार (आचूला ८।२६) । उड्डयर-- जो मलमूत्र का विसर्जन करते हुए चंचलता के कारण हाथ आदि
__ पर भी लेप लगा लेता है (बृटी पृ ५१४) । उड्डुहिअ-छिन्न (दे १११०५ व)। उडडोय-१ डकार (जीभा १०८) । २ उबाक, ओकाई (निचू ३ पृ८०)। उडढ-१ दीर्घ, बड़ा (सू ॥५॥३४) । २ वमन (बृटी पृ १५३६) । - ३ पात्र का किनारा (निचू ४ पृ १५७) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org