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वर्चासागर []
इनसे जप कभी नहीं करना चाहिये तथा सोना, चाँदी, मूँगा और मोतीकी माला हजारों उपवासों का फल देनेवाली हैं। इनकी मालाओंके द्वारा जप करने से हजारों उपवासोंका फल मिलता है। इस प्रकार मालाओंका
फल बतलाया ।
२३- चर्चा तेईसवीं चारण
प्रश्न-जपते राम सरपंच
प्रकार करना चाहिये ?
समाधान -- एक णमोकार मंत्रका उच्चारण तोन श्वासोच्छ्वासमें करना चाहिये। उसकी विधि इस प्रकार है-श्वासको खींचते समय 'नमो अरहंताणं' यह पद पढ़ना चाहिये। फिर श्वासको छोड़ते समय 'णमो सिद्धाणं' यह पद पढ़ना चाहिये। फिर श्वासको खींचते समय 'नमो आइरिआणं' पढ़ना चाहिये। फिर श्वास छोड़ते समय ' णमो उवज्झायाणं' पढ़ना चाहिये । श्वासको खींचते समय 'णमो लोए' पढ़ना चाहिये। फिर छोड़ते समय 'सव साहूणं पढ़ना चाहिये। इस प्रकार तीन इवासोच्छ्वासमें एक बार णमोकार मंत्र का जाप हुआ । जप करते समय इसी प्रकार शुद्ध उच्चारण करना चाहिये । धर्मरसिकमें लिखा भी है। नमस्कारपदान् पंच जपेद्यथावकाशकम् । अष्टोत्तरशतं चार्द्धमष्टाविंशतिकं तथा ॥२१॥ दिये पद विश्रामा उश्वासा सप्तविंशतिः । सर्व पापै क्षयं याति जप्ते पंचनमस्कृते ॥ २२ ॥
( अर्थात् समय मिलने पर णमोकार मंत्रको एकसौ आठ बार जपे अर्थात् चौअन बार जप करे अथवा अट्ठाईस बार जप करे एक-एक श्वासमें श्वास और उच्छ्वास दोनोंमें दो-दो पद विश्राम देकर जपें। इस प्रकार सत्ताईस श्वासोच्छ्वास द्वारा नौ बार नमस्कार मंत्र का जाप करें। इस प्रकार जप करनेसे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं ) यहाँ पर जो सत्ताईस श्वास बतलाये हैं सो एक कायोत्सर्ग में नौ बार नमस्कार मंत्र अपनेकी अपेक्षासे बतलाये हैं । इस प्रकार नमस्कार मंत्रको वार्षिक, उपांशु और मानस इन तीन प्रकारसे अपनी शक्तिके अनुसार पढ़ना चाहिये, जपना चाहिये ।
२४ - चर्चा चौबीसवीं
प्रश्न - नमस्कार मंत्र पढ़नेके जो वाचिक उपांशु और मानस ये तीन भेद बतलाये तो इनका स्वरूप
क्या है ?
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