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नयदृष्टि से सम्पन्न है, द्रव्यकृत, क्षेत्रकृत, कालकृत और भावकृत को जिनेश्वर परमात्मा ने जैसा कहा है, उस पर वैसी ही श्रद्धा रखता है वह
मुनि परिणामक है। प्र.90 अपरिणामक (अपरिणत) किसे कहते है ? उ. ज्ञान अपरिपक्व, अधूरा हो, आगमिक रहस्यों को नही जानता हो, द्रव्यकृत,
क्षेत्रकृत, कालकृत और भावकृत को जिनेश्वर ने जैसे कहा है, उस पर वैसी " श्रद्धा नही रखता, वह मुनि अपरिणामक है। प्र.91 अतिपरिणामक किसे कहते है ? उ. जो वस्तु जिस रुप में जिस काल में ग्राह्य रुप में कथित है, उसे आपवादिक
रुप में ग्रहण करने की मति वाला शिष्य अतिपरिणामक कहलाता है । प्र.92 अपरिणामक व अतिपरिणामक को छेद सूत्र की वाचना के अयोग्य
क्यों का ? उ. क्योंकि इन सूत्रों के रहस्य को पचा पाना अत्यन्त कठिन होता है। उसके
लिए धैर्य, विचारों की गंभीरता और शालीनता चाहिए । प्रत्येक शिष्य अपवादों को देखकर विचलित हो जाता है। उसमें निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति
अन्यमनस्कता आ जाती है, मन संशयों से भर जाता है। प्र.93 चूलिका से क्या तात्पर्य है ? उ. मूल सूत्र में नही कहे गये विषय को बाद में जोडना, चूलिका है। प्र.94 चूलिका सूत्र के नाम बताइये ? उ. नंदी सूत्र व अनुयोग द्वार सूत्र । प्र.95 अनुयोग द्वार सूत्र किसे कहते है ? उ. शास्त्र के गंभीर भाव या अर्थ को समझने के लिए जिस अनेकान्तवाद, ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 24
__ आगमों के भेद-प्रभेद
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