________________
...७०
...७४
साधारण धर्म ६२-२६४ २० प्राणीमात्रका व्येय केवल सुख है २१ सुखका उद्गम स्थान और धर्मका स्वरूप २२ धर्मका प्राण केवल त्याग है ... २६ भोग्य पदार्थोंमें सुखका असम्भव २४ सुख इच्छानिवृत्तिमे ही है २५ सुखकी साक्षात् प्राप्ति केवल अहङ्कारसे पल्ला छुड़ानेमे है २६ स्वधर्म क्या है ?
...२ २७ धर्म व अधिकारका परस्पर सम्बन्ध ...४
(१) पामर पुरुष ८८.१०६ २८ पामर-पुरुपके लक्षण और उसके प्रति उपदेश ... २८ धार्मिक विवाहका उद्देश्य ... ३० 'वैताल' शब्दकी व्याख्या ...
...६४ ३१ पामर-पुरुषोंद्वारा किये जानेवाले यज्ञ-दानादिका स्वरूप ६५ ३२ पामर-पुरुपोंका प्राकृत स्वभाव तथा वैतालके चरणोंमें त्यागकी प्रथम भेट
... ३३ वैतालके चरणोंमे त्यागकी द्वितीय भेट
- (२) पिपयी पुरुष ३०६-१२७ ३४ विपयी पुरुपके लक्षण
....१०६ ३५ विपयी पुरुपके साथ परस्पर विचारोंका परिवर्तन
., तथा इहलौकिक पदार्थोमें सुखका असम्भव ...११० ३६ स्वर्गसम्बन्धी भोग्य-विपयोंमें सुखका असम्भव , ...११७ ३५ सुखस्वरूपी वैवालके चरणों में स्याकी तीसरी भेट...१२२ ३७ त्यागकी तीसरी मेटका भावार्थ और उसका फल ...१२५