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अनेकान्त/55/1
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जैनाचार्य प्रणीत ऐसे ग्रन्थ महार्णवों का भी कार्य हाथ में लेने से पण्डित जी नहीं घबराए, जिन्हें देख अच्छे-अच्छे विद्वानों का भी गर्व खर्व होने लगता है। आप द्वारा मेरी जानकारी अनुसार निम्न ग्रन्थों की संपादन अनुवाद एवम् व्याख्या की गयी;आगम ग्रन्थ
1. धवल सिद्धान्त के 5 भाग पूर्ण एवम् छठा
आधाभाग कर्म-सिद्धान्त
2. प्राकृत पञ्चसंग्रह एवम् 3 कर्म प्रकृति काव्य ग्रन्थ
4. दयोदय चम्पू, 5. सुदर्शनोदय महाकाव्य, 6. जयोदय महाकाव्य(पूर्वार्द्ध), 7. वीरोदय
महाकाव्य एवम् 8. वीरवर्द्धमान चरित्र न्याय एवम् दर्शन ग्रन्थ 9. प्रमेय रत्नमाला श्वेताम्बर जैन ग्रन्थ 10. दशवैकालिक सूत्र-प्रवचन संग्रह पाँच भाग
11. जीत सूत्र, 12. दशा श्रुतस्कन्ध 13. निशीथ सूत्र, 14. स्थानांगसूत्र व 15. समवायाग
श्रावकाचार
16. श्रावकाचार संग्रह पाँच भाग (जिसमें 33
श्रावकाचारों का संग्रह है)
17. वसुनन्दि श्रावकाचार एवम् 18. जैन धर्मामृत इस ग्रन्थों का सकल कलेवर 20,000 पृष्ठों से भी ज्यादा है। मेरी जानकारी अनुसार अन्तिम समय में आपने श्वे. जैन ग्रन्थ नन्दिसूत्र की हिन्दी टीका तथा जैन मन्त्रशास्त्र ग्रन्थ तैयार किया था, जिनके प्रकाशन की सूचना उपलब्ध न हो सकी। जैन मन्त्र शास्त्र, ग्रन्थ विषयक जानकारी मुझे भारतीय ज्ञानपीठ के अध्यक्ष साहू श्रेयांस प्रसाद जी द्वारा प्राप्त हुयी थी। षट्खण्डागमः प्रस्तुत ग्रन्थ अन्तिम तीर्थडर भगवान महावीर रूप हिमाचल से निःसृत द्वादशांग वाग्गंगा की अवच्छिन्न परम्परा का ग्रन्थरत्न है। यह दिगम्बर परम्परा की अनुपम निधि है। भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि निःसृत द्वादशांग जिन वाणी का ज्ञान, आचार्य परम्परा से क्रमशः हास होता हुआ आ. धरसेन तक आया। धरसेन आचार्य अंगों एवम् पूर्वो के एक देश ज्ञाता थे एवम् श्रुत