Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 251
________________ 44 अनेकान्त-55/4 जो वीर हैं अर्थात् जिन्होंने विशेष रूप से समस्त पदार्थ समूह को प्रत्यक्ष कर लिया है, जो जिनों में श्रेष्ठ हैं तथा राग, द्वेष और भय से रहित हैं ऐसे भगवान् महावीर धर्म-तीर्थ के कर्ता हैं। सूत्रकृताङ्ग. में लिखा है पुढोवमे घुणती विगयगेही, ण सण्णिहि कुव्वइ आसुपण्णे। तरिउं समुदं व महाभवोध अभयकरे वीर अणंतचक्खू॥ 6/25 आशुप्रज्ञ ज्ञातपुत्र पृथ्वी के समान सहिष्णु थे, इसलिए उन्होंने कर्म शरीर को प्रकम्पित किया। वे अनासक्त थे इसलिए उन्होंने संग्रह नहीं किया। वे अभयंकर वीर (पराक्रमी) और अनन्त चक्षु वाले थे। उन्होंने संसार के महान् समुद्र से तर कर निर्वाण प्राप्त कर लिया। भगवान् महावीर के स्तवन में और भी लिखा है घणित व सदाण अणुत्तरं उ, चंदे व ताराण महाणुभावे। गंघेसु वा चंदण माहु सेट्ठ एवं मुणीणं अपडिण्ण माहु।। 6/19 जैसे शब्दों में मेघ का गर्जन अनुत्तर, तारागण में चन्द्रमा महाप्रतापी और गंधों में चन्दन श्रेष्ठ है। वैसे ही अनासक्त मुनियों में ज्ञातपुत्र श्रेष्ठ हैं। भगवान् महावीर के युग में श्रमणों के चालीस से अधिक सम्प्रदाय थे उनमें पांच बहुत प्रभावशाली थे 1. निर्ग्रन्थ महावीर का शासन, 2. शाक्य बुद्ध का शासन, 3. आजीवक मक्खलि गोशालक का शासन, 4. गौरिक-तापस शासन, 5. परिव्राजक-सांख्य शासन। बौद्ध साहित्य में 6 श्रमण सम्प्रदायों तथा उनके आचार्यों का उल्लेख है 1- अक्रियावाद-आचार्य पूरणकश्यप, 2-नियतिवाद-मक्खलिगोशाल, 3-उच्छेदवाद-अजितकेशकम्बली, 4-अन्योन्यवाद-पकुधकात्यायन, 5-चातुर्याम संवरवाद-निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र, 6-विक्षेपवाद-संजयवेलट्ठिपुत्त। बौद्ध ग्रन्थों में भी निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र महावोर, वर्द्धमान को सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, लोकमान्य नेता और तीर्थंकर के रूप में उल्लेख किया है। यथा-'नगंठो'

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