Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 260
________________ अनेकान्त-55/4 परिग्रह के परिणाम- आज विश्व में वर्ग-संघर्ष की जो दावाग्नि प्रज्ज्वलित हो रही है, विषमतायें बढ़ रही हैं, असन्तोष और ईर्ष्या जन्म ले रही है, धनी व निर्धन, श्रम एवं पूजी, नियोजक व नियोजित आदि के मध्य जो अन्तर बढ़ता जा रहा है, मानव मानव का शोषण कर रहा है तथा हिंसक घटनायें, बेईमानी. चोरी, डकैती, व्यभिचार, अपहरण तथा युद्धों की विभीषिकायें धधक रही हैं उन सबका मूल कारण है कि विश्व के लोग प्रत्येक वस्तु को अपनी समझकर उसे येन-केन प्रकारेण प्राप्त करना चाहते हैं। __ संग्रह की भावना वश व्यक्ति झूठ बोलता है, चोरी करता है, कम तौलता है-नापता है, छल कपट करता है, धोखा देता है, षड्यन्त्र रचता है, हत्यायें करता है और यहां तक कि वह भीषण युद्ध भी करता है। भगवती आराधना में लिखा है संगणिमित्तं मारेड अलियवयणं च भणड तेणिक्का भजदि अपरिमिदमिच्छं सेवदि मेहुणमवि य जीवो। गाथा1/25 परिग्रह के लिए प्राणी असि, मसि आदि षट्कर्म करता है जिससे जीवों की हिंसा, दूसरे का धन चुराने की इच्छा से घात, झूठा भाषण, मन में अमर्यादित इच्छा तथा मैथुन मे प्रवृत्ति करता है। परिग्रह त्याग बिना अहिंसादि व्रत दृढ़ नहीं हो सकते। गंथो भयं णराणं सहोदरा एयरत्थ जा जं ते। अण्णोण्णं मारे, अत्थणिमित्तं मदिमकासी॥ - भगवती आराधना 1/28 परिग्रह से मनुष्य भयभीत होता है। परिग्रह की बढ़ती हुई तीव्र अभिलाषा के कारण एक माता के उदर से उत्पन्न भाई दूसरे भाई को मारने के लिए उद्यत हो जाता है। इंदियमयं सरीरं गंथं गेहदि य देह सुक्खत्थं। इंदिय सुहामिसासो गंथग्गहणेण तो सिद्धो॥ -भगवती आराधना 1/63 -विषयाभिलाषा से कर्म-बन्ध होता है अतः मुमुक्षु इनसे पृथक् रहते हैं

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