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अनेकान्त-55/4
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कफ आदि दोषों को बलात् निकाल देता है, दूर कर देता है तथा अकाल मृत्यु को दूर करने के लिए रसायन आदि का उपदेश देता है। यदि अकालमरण न होता तो रसायन आदि का उपदेश व्यर्थ है। रसायन का उपदेश है अत: आयुर्वेद के सामर्थ्य से भी अकालमरण सिद्ध होता है। दु:ख का प्रतीकार करने के लिए आयुर्वेदिक प्रयोग है, ऐसा नहीं है उभयतः औषधि का प्रयोग देखा जाता है। केवल दु:ख के प्रतीकार के लिए ही औषधि दी जाती है, यह बात नहीं है, अपितु उत्पन्न रोग को दूर करने के लिए और अनुत्पन्न को हटाने के लिए भी दी जाती है। जैसे औषधि से असाता कर्म दूर किया जाता है, उसी प्रकार विष आदि के द्वारा आयु ह्वास और उसके अनुकूल औषधि से आयु का अनपवर्त देखा जाता है।(4) __ महान् तार्किक विद्यानन्द स्वामी भी उक्त कथन का काल और अकालनयों की दृष्टि से समर्थन करते हुए लिखते है (5) कि जिनका मरणकाल प्राप्त नहीं हुआ उनके भी मरण का अभाव नहीं है अर्थात् उनका भी मरण हो जाता है क्योंकि खड्ग प्रहार आदि के द्वारा मरणकाल प्राप्त न होने पर भी मरण देखा जाता है। यदि यह कहा जाये कि जिनका मृत्युकाल आ गया उन्ही का खड्ग प्रहार आदि द्वारा मरण देखा जाता है, जिनका मरणकाल आ गया उनका तो उस समय मरण होगा ही, अत: वह खड्ग प्रहार आदि की अपेक्षा नहीं रखता अर्थात् खड्ग प्रहार आदि होगा तब भी मरण होगा और खड्ग प्रहार आदि नहीं होगा तब भी मरण होगा क्योंकि उसका मरणकाल व्यवस्थित है। जिनके मरणकाल का खड्ग प्रहार आदि अन्वय व्यतिरेक है अर्थात् खड्ग प्रहार आदि होगा तो मृत्युकाल उत्पन्न हो जायेगा, यदि खड्ग प्रहार आदि नहीं होगा तो मरणकाल उत्पन्न नहीं होगा, उनका मृत्युकाल अव्यवस्थित (अनियत) है अन्यथा खड्ग प्रहार आदि की निरपेक्षता का प्रसंग आ जायगा किन्तु अकाल मृत्यु के अभाव में आयुर्वेद की प्रमाणभूत चिकित्सा तथा शल्य चिकित्सा (आपरेशन) की सामर्थ्य का प्रयोग किस पर किया जाए? क्योंकि चिकित्सा आदि का प्रयोग अकाल मृत्यु के प्रतीकार के लिए किया जाता है। आगे और भी कहते हैं-"कस्यचिदायुरुदयान्तरड़े. हेतौ बहिरङ्गे. पथ्याहारादौ विच्छिन्ने जीवनस्याभावे प्रसक्ते तत्सम्पादनाय जीवनाधानयेवापमृत्योरस्तु प्रतिकारः" अर्थात् आयु का अन्तरङ्ग. कारण होने पर भी किन्तु पथ्य आहार आदि के विच्छेद