________________
अनेकान्त-55/4
रूप बहिरड़ कारण मिल जाने से जीवन के अभाव का प्रसंग आ जाता है। ऐसा प्रसंग आने पर जीवन के आधारभूत आहारादिक अकाल मृत्यु के प्रतिकार हैं। हां, अकालमरण का मृत्युकाल निश्चित होता तो अकाल मृत्यु का प्रतिकार नहीं हो सकता था जैसे कालमरण का मृत्युकाल व्यवस्थित है, उसका प्रतिकार नहीं हो सकता किन्तु अकाल मृत्यु का प्रतिकार हो सकता है क्योंकि अकाल मृत्यु का मृत्युकाल अव्यवस्थित (अनियत) है, वह मृत्युकाल बहिरंग विशेष कारणों से उत्पन्न होता है।
बाहयकारणों से आयु का क्षय होता है यही बात नेमिचन्द्राचार्य ने कही है।(6) भगवती आराधना में असत्य के प्रसंग में कहा गया है "विद्यमान पदार्थ का प्रतिषेध करना सो प्रथम असत्य है जैसे कर्मभूमि के मनुष्य की अकाल में मृत्यु का निषेध करना।''(7) यह प्रथम असत्य मानना निश्चित ही कालमरण के समान अकालमरण की सत्ता सिद्ध करता है। कर्मभूमियां मनुष्य और तिर्यञ्च जीवों की बध्यमान और भुज्यमान आयु में अपवर्तन होता है इसका प्रमाण तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक से निम्न रूप में देखिए- “आयुर्बन्धं कुर्वतां जीवानां परिणामवशेन बध्यमान भवति। तदेवापवर्तनं घात इत्युच्यते। उदीयमानायरपवर्तस्य कदलीघाताभिधानात।" आयु कर्म का बन्ध करने वाले जीवों की परिणाम के कारण से बध्यमान आयु का अपवर्तन भी होता है, वही अपवर्तन घात कहा जाता है क्योंकि उदीयमान आयु के अपवर्तन का नाम कदलीघात है। ___ आचार्यों ने ऐसे महापुरुषों का उल्लेख किया है जिनका अकाल में आयु का क्षय हुआ है।
जैनागम में नय विवक्षा के कथन को ही प्रामाणिक माना गया है आचार्य अमृतचन्द्र काल के साथ अकाल का उल्लेख करते हुए लिखते हैं-"कालनयेन निदाघदिवसानुसारि पच्यमानसहकारफलवत्समयापत्रसिद्धिः अकालनयेन कृत्रिमोष्म पच्यमानसहकारफलवत्समयानायत्त सिद्धिः" (प्रवचनसार) अर्थात् काल नय से कार्य की सिद्धि समय के अधीन होती है, जैसे आम्रफल गर्मी के दिनों में पकता है। अर्थात् कालनय से कार्य अपने व्यवस्थित समय पर होता है। अकालनय से कार्य की सिद्धि समय के अधीन नहीं होती है जैसे