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अनेकान्त/55/2
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पूर्ण निष्णात थे, पर अपने पिता के, मित्र की, प्रेरणा और आग्रह पर, आपने 'जंबुसामि चरिउ' की रचना तत्कालीन लोकभाषा अपभ्रंश में ही की।
कवि को प्राचीन साहित्य में तो जंबुस्वामी के चरित्र से सम्बन्धित ऐतिहासिक सामग्री अत्यन्त संक्षिप्त रूप में ही प्राप्त हुई; परन्तु उसी नींव पर उन्होंने अपनी कल्पना और काव्य प्रतिभा के बल पर 'जंबुसामि चरिउ' नामक इस महाकाव्य की रचना की कवि की इस कृति की कथावस्तु का आधार, कवि गुणपाल की प्राकृत भाषा की रचना 'जंबुचरियं' रही है। इसके अलावा अन्य पूर्ववर्ती कृतियों में पायी जाने वाली सामग्री में ही परिवर्तन, परिवर्द्धन और संशोधन करके वीर कवि ने अपनी इस कृति को एक चरित्रात्मक महाकाव्य का रूप प्रदान किया है। उन्होंने इसकी कथावस्तु 11 संधियों में विभाजित की है। ग्रंथ के आरम्भ में मंगलाचरण करके, अपने अध्ययन की बात कहता हुआ, विनम्रता प्रदर्शित करता है। प्रथम तीन संधियों में कवि ने भवदत्त और भवदेव के जन्म जन्मान्तरों का वर्णन किया है। चौथी संधि से जंबुस्वामी की कथा का आरम्भ हो जाती है। पाँचवीं संधि से सातवीं तक कवि ने जंबुस्वामी की वीरता तथा चार कन्याओं के साथ उनके विवाह का वर्णन किया है। आठवीं संधि में बसन्त क्रीड़ा, हाथी का उपद्रव तथा युद्ध वृत्त आदि का वर्णन है। इस के बाद कवि ने काव्य के लक्षणों पर प्रकाश डालते हुये कथा सूत्र को आगे बढ़ाया है। इसी में सुधर्मास्वामी से भवदत्त और भवदेव के पाँचो भवों (जन्मों) का वर्णन सुनकर विरक्त हुये जम्बुस्वामी को चारों पत्नियाँ वश में करने का प्रयास करती हैं। नौवीं संधि में भी इसी परस्पर कथा-वार्ता का क्रम चलता है। दशवीं संधि में विद्युच्चर भी उन्हें भोगों की ओर प्रेरित करने का विफल प्रयास करता है, पर जंबुस्वामी दीक्षा ग्रहण कर मुनि बन जाते है। उनके माता-पिता
और चारों पत्नियाँ भी साधना के मार्ग पर चल पड़ते है। इसी संधि में सुधर्मा स्वामी के निर्वाण, जंबूस्वामी कैवल्य और निर्वाण का भी वर्णन किया है। ग्यारहवीं संधि में विद्युच्चर की साधना के द्वारा सर्वार्थ सिद्धि गमन का भी वर्णन है। अन्त में कवि ने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपना परिचय तथा कृति के रचना काल आदि का उल्लेख किया है। इस कृति में अन्तर्कथाओं ने मूल कथा वस्तु को गति प्रदान करने के साथ-साथ कथा वस्तु की मूल धारा को आवश्यक मोड़ देने में बड़ी सहायता की है। कहीं-कहीं वे भावी घटनाओं का संकेत भी देती हैं। वे नायक के चारित्रिक गुणों का उद्घाटन करते हुए, कवि को अपने निश्चित उद्देश्य तक पहुंचाने में