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अनेकान्त/55/3
एक दुखद पहलू यह भी है कि न चाहते हुये भी गरीबी बेरोजगारी एवं अन्य कारणों से अनेक महिलाओं, युवतियों यहां तक कि छोटी बच्चियों को इस नरक में ढकेला जा रहा है। जहां से वे जीवन भर मुक्त नहीं हो पाती और नारकीय जीवन बिताने को मजबूर हो जाती है। मनुष्य की बढ़ती हुई विकृति का ही नमूना है कि छोटी बच्चियों से सेक्स संबंध बताने वाले ये आंकड़े इतनी भंयकर तस्वीर दिखाते है कि मानवता मानो खत्म हो गयी हो। असंयम
और अशिक्षा ने जो विकृतियां पैदा की है उन्हें हम सब मिलकर दूर करने का प्रयास करें और संयम ही जीवन है इस सिद्धांत को अपनायें। शिकार :- शिकार का अर्थ हैं किसी प्राणी को अपने शौकपूर्ति या मनोरंजन के लिये मारना। मनुष्य इतना क्रूर और हिंसक होता जा रहा है कि उसे हिंसक कार्यो में आनंद की अनुभूति होने लगी है। आज छोटे जीवों से लेकर विशाल प्राणी तक का अस्तित्त्व खतरे में है। अनेक शौकीन लोग मनोरंजन के लिये शिकार करते हैं और उसका सिर खाल आदि ड्राइंग रूम में लगाकर अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करना नहीं भूलते। दवाईयों एवं सौंदर्य प्रसाधनों एवं विभिन्न प्रयोगों की प्रयोगशालाओं के माध्यम से प्राणियों का नितप्रतिदिन घात हो रहा है। विदेशों में प्रचलित खेलों में सांड आदि को लड़वा कर हिंसा में आनंद लेते हैं। अरब देशों में छोटे बच्चों को ऊंट की पीठ से बांधकर दौड़ लगवाते हैं और बच्चे को तड़पता देख आनंदित होते हैं। इसी तरह के हिंसक मनोरंजन कबूतरों, मुर्गो आदि को लड़वा कर भी करते हैं। ___ आज शिकार आदि पर प्रतिबंध तो है पर मानता कौन है? घरेलू हिंसा भी खूब हो रही है, घरों में कीटनाशकों के माध्यम से खूब कीड़े-मकोड़ों को मौत के घाट उतार दिया जाता है, गर्भपात करवाना भी शिकार रूपी व्यसन है। एक जीव को गर्भ में ही खत्म करवाना मानवीय हिंसा की पराकाष्ठा है। इतना हिंसामय वातावरण हो गया है कि पृथ्वी भी कांप उठती है और प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ता जा रहा है। याद रखो दीन हीन प्राणियों को मारोगे तो भव भव भटकना पड़ेगा, सेनापति के शिकार की अनुमोदना का फल मुनि पर्याय में 500 मुनिराजों को भोगना ही पड़ा था। अतः शिकार व्यसन का त्याग करो | और "अहिंसा परमो धर्मः" सिद्धांत को जीवन में उतारो।