Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 240
________________ अनेकान्त-55/4 33 के लालजी साँड़ के रास्ते में है, जहां 1008 भगवान चन्द्र प्रभ की श्वेत पाषाण की विशाल पद्मासन प्रतिमा सं. 1883 में दीवान अमरचन्द द्वारा प्रतिष्ठापित है। चैत्र कृष्णा अमावस्या को मुनिश्री ने जयपुर से विहार किया-श्रद्धालुजन अजमेर रोड स्थित नाटाणी के बाड़ा तक गये-वहां से महाराज ने भक्तों को वापस भेजा। "नाटाण्यां का बागसूं दई पंचानै सीख दया भाव तुम राखज्यो, मात्र जीव पर ठीक" || 189 ।। नोट - जयपुर रियासत के समय राज्य के प्रमुख दीवान मुख्यमंत्री आदि इस बाग में ही निवास करते थे। यहां आरतराम सोनी ने नवधा भक्तिपूर्वक आहार दिया। ____ 108 मुनि श्री बलभद्र जी महाराज नाटाणी के बाग से प्रस्थान कर, गिरनार क्षेत्र की यात्रार्थ आगे बढ़े-क्रमश: गिरनार जी की यात्रा की। अपनी प्रतिज्ञानुसार मुनि श्री ने शिखर जी के लिये प्रस्थान किया और मार्ग में चम्पापुर, पावापुर आदि क्षेत्रों की यात्रा करते हुए सम्मेद शिखर पहुँचे, जहां तीनों मुनिराज एकत्र हो गये-वृषभसेन जी, बाहुबलि जी तथा बलभद्र जी "गांव बावडा पहँच के क्रोध दाविल्यो ग्यान। ईठासू व गुरु गये, सामायिक धरि ध्यान।। 152 बलिभदर मुनिराज की कही बोध की बान। नेमनाथ गिरनारजी, जाढो की करिजात॥ 153 पावापुर चंपापुरी बिचि बिचि तीरथ ओर। ढेठि शिखरजी पोंचसी तीनमुन्या की जोड॥ 154 अंत में अष्ट द्रव्य की पूजा का महत्व बताते हुए रचना को समाप्त किया है। उपसंहार उक्त रचना के प्रारंभिक पद नहीं होने से यह तो ज्ञात नहीं होता है कि

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