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अनेकान्त-55/4
विहार करते हुए मुनिराज ने चैत्र कृष्णा दशमी को आमेर में प्रवेश किया, जिसकी सूचना सायंकाल तक जयपुर नगर में पहुँच गई। मुनिराज ने आमेर के मन्दिरों के दर्शन किये।
जयपुर के तत्कालीन प्रमुख समाज सेवी श्री हरचन्दसाह अन्य लोगों के साथ मुनिराज को लेने आमेर पहुँचे और वहां से लाकर राणा जी की छत्रियों के सामने नसियां में ठहराया, जहां जयपुर से दर्शनार्थी आये और धर्म लाभ लिया।
चैत्र कृ. 11 मंगलवार को जयपुर में हरचन्द साह के यहां आहार लेकर मुनि श्री नसियां वापस आ गये जहां धर्मोपदेश हुआ तथा चर्चा हुई।
चैत्र कृ. दूसरी ग्यारस(11) बुधवार को तनसुख पांडे के यहां आहार हुआ तथा मन्दिर के दर्शन किये। अन्य लोगों ने भी भक्ति पूर्वक दर्शन वंदना की तथा यह देखकर आश्चर्य चकित रह गये कि इस पंचम काल में भी ऐसे महान तपस्वी मुनिराज बिरले ही हैं। उपसर्ग की चर्चा सुनकर तो लोगों में और भी श्रद्धा बढ़ी।
"देख छबि मनिराज की, उछव मन में जोय। ऐसे पंचम काल में, बिरले मुनिवर होय।। 180।। चैत्र बदी 12 गुरुवार को सामायिक से उठे धर्मोपदेश दिया तथा आहार की बेला होने पर दर्शनाथी उठकर आ गये। मुनिराज आहार चर्या की मुद्रा में नगर की ओर आये तो पन्नालाल बड़जात्या ने मुनिराज को पड़गाहा तथा नवधा भक्तिपूर्वक आहार दिया।
चैत्र कृष्णा 13 को मोहनलाल काला के यहाँ आहार लेकर नसियां वापस आये। दूसरे दिन चैत्र कृष्णा चतुर्दशी शनिवार को जयपुर के प्रसिद्ध दीवान अमरचंद जी पाटनी के यहां आहार हुआ। दीवान जी के मन्दिर में दर्शन किये-वहां रचना देखी तथा चतुर्दशी को होने वाली मण्डल पूजा सुनी, ताण्डव-नृत्य देखा भजन आदि सुने। दीवान अमरचन्द जी का मन्दिर जयपुर