Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 245
________________ 38 अनेकान्त-55/4 अर्थ - आर्यिकाओं के आने के समय मुनि को अकेले नहीं बैठना चाहिये। इसी प्रकार उनके साथ बिना प्रयोजन वार्तालाप भी नहीं करना चाहिये। इनमें से यदि अकेली आर्यिका प्रश्न करे तो अकेला मुनि उत्तर नहीं दे। यदि गणिनी को आगे करके वह प्रश्न पूंछती है तभी उसका उत्तर देना चाहिये। तात्पर्य यह कि साधु-आर्यिका असमय में और अकेले में न तो मिले और न ही प्रयोजनहीन चर्चा करे। तरुण-तरुणी के वार्ता का दुष्परिणाम तरुणो तरुणीए सह कहा वसल्लावणं च जदि कुज्जा आणाकोवादी या पंचवि दोसा कदा तेण॥ (मूला. 179) अर्थ - तरुण मुनि तरुणी के साथ यदि कथा या वार्तालाप करता है तो उस मुनि ने आज्ञाकोप, अनवस्था, मिथ्यात्व-आराधना, आत्मनाश और संयम विराधना इन पांच दोषों को किया है, ऐसा समझना चाहिये। इसका परिणाम सर्वनाश ही है। आर्यिकाओं के आवास में मुनिचर्या का निषेध और उसके परिणाम णो कप्पदि विरदाणं विरदीणमुवासयहि चिठे, तत्थ णिसेज्जउवटु ण सज्झायाहारभिक्खवोसरणे। (मूला. 180) अर्थ - आर्यिकाओं के निवास स्थल (वसतिका) में मुनियों का रहना और वहां पर बैठना, लेटना, स्वाध्याय आहार, भिक्षा व कोयोत्सर्ग करना युक्त नहीं है। स्पष्ट है कि आर्यिकाओं के निवासस्थल पर मुनियों का निवास निषिद्ध है। मूलाचार के समयसाराधिकार के क्षेत्र शुद्धि की गाथा क्रमांक 54 में पुनः उक्त तथ्य की पुष्टि की है। यह गाथा उक्त गाथा 180 के प्रायः समान ही है और गाथा क्रमांक 952 में निर्देशित किया है कि धीर मुनि पर्वतों की कन्दरा, श्मशान, शून्य मकान और वृक्षों के नीचे आवास करें। आर्यिका-मुनि सहवास का दुष्परिणाम मूलाचार की गाथा 181 एवं 182 में आर्यिकाओं और मुनियों के संसर्ग

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