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अनेकान्त-55/4
का दुष्परिणाम दर्शाया है जो इस प्रकार है___ "काम से मलिनचित्त श्रमण, स्थविर, चिरदीक्षित, आचार्य, बहुश्रुत तथा तपस्वी को भी नहीं गिनता है, कुल का विनाश कर देता है (गाथा 181)। वह मुनि कन्या, विधवा, रानी, स्वेच्छाचारिणी तथा तपस्विनी महिला का आश्रय लेता हुआ तत्काल ही उसमें अपवाद को प्राप्त होता है (गाथा 182)। भगवती आराधना की गाथा 341 (देहलीप्रकाशन) दिशाबोधक है
खेलपडिद मप्पाणं ण तरदि जह माच्छिया विभोचेदं
अज्जाणचरो ण तरदि तह अप्पाणं विमोचेदं (241 भ. आ.) अर्थ - जैसे मनुष्य के कफ में पड़ी मक्खी उससे निकलने में असमर्थ होती है वैसे ही आर्यिका के साथ परिचय किया मुनि छुटकारा नहीं पा सकता। आर्यिकाओं की दीक्षा-आचार्य के गुण : ___जो गम्भीर हैं, स्थिर चित्त हैं, मित बोलते हैं, अल्प कौतुकी हैं, चिरदीक्षित हैं और तत्वों के ज्ञाता हैं ऐसे मुनि आर्यिकाओं के आचार्य होते हैं। इन गुणों से रहित आचार्य से चार काल अर्थात् दीक्षाकाल, शिक्षाकाल, गणपोषण और आत्मसंस्कार की विराधना होती है और संघ (गच्छ) का विनाश हो जाता है (मूला. 184-185)। इस दृष्टि से योग्य आचार्य से ही नारियों को दीक्षा लेना उचित है।
आर्यिकाओं का आवास कैसा हो, वे कहां और कैसे जावें : ____ आर्यिकाओं के उपाश्रय या आवास के सम्बन्ध मे मूलाचार में स्पष्ट निर्देश है, जो इस प्रकार है :___जो गृहस्थों से मिश्रित न हो, जिसमें चोर आदि का आना-जाना न हो और जो विशुद्ध संचरण अर्थात् जो मल विसर्जन गमनागमन एवं शास्त्र स्वाध्याय आदि के योग्य हो, ऐसे आवास (वसतिका) में दो या तीन या बहुत सी आर्यिकायें एक साथ रहती हैं (गाथा 191)। आर्यिकाओं को बिना कार्य के पर-गृह नहीं जाना चाहिये और अवश्य जाने योग्य कार्य में गणिनी से पूछकर साथ में मिलकर ही