Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 237
________________ अनेकान्त-55/4 थे भी तीरथ ढोकि ज्यो, ठेठ शिखरजी जाय। ज्यांका पुन्य प्रभाव सूं सुख संपदा पाय॥" (137-140) संतीलाल के कथनानुसार वृषभसेन मुनिराज तो गृहस्थ अवस्था में व्रतादि करके मुनि बने थे, वे जैन जाति के थे और बाहुबलि मुनिराज जाति से राजपूत थे तथा 40 वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी। वृषभसेन मुनिराज की आयु उस समय 65 वर्ष की थी अर्थात् उन्होंने 42 वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी। बाहुबलि मुनिराज ने 28 वर्ष की आयु में दीक्षा ली। विहार करते हुए संघ मथुरा पहुँचा, वहां एक मुनिराज और मिल गये अत: वहां तीन मुनि हो गये। संघ हाड़ोती प्रदेश (कोटा-बूंदी)के सुनारा गांव में आया-वहां की जैन समाज ने श्रद्धापूर्वक चातुर्मास संपन्न कराया। चातुर्मास समाप्त कर दोनों मुनि पुनः मथुरा आ गये। मथुरा के समीप उवरा' गांव निवासी एक लालचन्द जैन, जो पैंतीस वर्ष का युवक था, उसने मुनिराज की शांत मुद्रा देख मुनि दीक्षा लेनी चाही। उसने मुनिराज के समक्ष णमोकार महामंत्र पढ़कर सारे वस्त्र उतार दिये और मुनि दीक्षा देने की प्रार्थना की तथा संघ के साथ सम्मेद-शिखर भी जाने की बात कही। मुनि वृषभसेन जी ने कहा-तुम पहले गिरनारजी क्षेत्र की वंदना करके आओ-यह पंचम काल है व्रतों की पूरी पकाई के पश्चात् ही दीक्षा योग्य है। ___ मुनिराज वृषभसेन जी ने यह भी कहा कि तुम गिरनार क्षेत्र से लौटकर आओ-यदि हम जीवित रहे तो अपना पुनः मिलन हो जाएगा तब आपकी दीक्षा होगी "मेह भी खिच्या आवस्या, रहसी तो परजाय। समागम सबको मिले, जब दिष्या पाय॥" 163 यह सुनकर स्वयं दीक्षित लालचन्द ने गुरुओं को नमस्कार कर मथुरा से

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