Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 236
________________ अनेकान्त-55/4 प्रतिज्ञा ले रखी थी। उसने नवधा भक्ति पूर्वक मुनिराज वृषभसेन को आहार दिया। 29 साईवाड़ के श्रावकों ने दूसरे मुनिराज बाहुबलि को नवधा भक्ति पूर्वक आहार दिया तथा उनसे कोई आखड़ी प्रतिज्ञा देने को कहा। मुनिराज ने कहा था कि सब जीवों के प्रति दया भाव रखो। मुनिसंघ की भावना तीर्थराज सम्मेद शिखरजी को जाने की थी अतः साईवाड़ से बिहार कर आगे बढ़े। साईवाड़ के श्रावक दूर तक छोड़ने गये । साईवाड़ आमेर से नाहटा होकर 9 कि.मी. दूर है। यहां सं. 1748 में दीवान रामचन्द्र छावड़ा द्वारा निर्मित शिखर बंद मन्दिर है। यहां कासलीवाल एवं गोधा गोत्री परिवार हैं। मुनिराज अनेक गांवो में विहार करते हुए निकले जहां जैनों के घर तथा मन्दिर आये वहां नवधा भक्ति पूर्वक आहार की व्यवस्था हो जाती तथा जहां व्यवस्था नहीं होती मुनिराज उपवास रखते । मुनि संघ की आहार की व्यवस्था के लिये कर्णाटक देश के पंचो ने व्यवस्था की उन्होंने संतीलाल उसकी पत्नी तथा एक ब्राह्मण एवं एक व्यास को खर्चा देकर, दो टट्टु सामान रखने को साथ में दिये तथा उनसे कह दिया कि तुम लोग जहां कहीं श्रावक चौके की व्यवस्था नहीं कर सके वहां मुनिराज के आहार की व्यवस्था करो - इनके साथ तुम भी सम्मेद शिखरजी की यात्रा कर लेना। " कर्णाटक के देस के, पंच किया छै साथ। खरची सोंपी खरचकूं, राखो थांकै हाथ" संतीलाल फुनि भारिज्या, विरामण, व्यास जु भेष धार बाई मिले, टटु ल्याये दोय" जीठै श्रावक नै, करें आहार गुरु काज । सांतरि सारी थे करो, पुड़गाहो मुनिराज " दोय

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