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अनेकान्त शोध पत्रिका में प्रकाशित जैन इतिहास विषयक प्रमुख लेख
- डॉ. सुरेश चन्द जैन
20वीं शताब्दी श्रमण परम्परा के लिए महत्त्वपूर्ण शताब्दी रही है । स्वनाम धन्य पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी, ब्र. शीतलप्रसाद जी, आ. जुगलकिशोर मुख्तार, बाबू छोटेलाल, पं. गोपालदास जी बरैया, एवं परम्परा पोषक पण्डित वर्ग के अभ्युदय का जैन सांस्कृतिक परम्परा के विकास में इस शताब्दी कालखण्ड
विशिष्ट योगदान रहा है। इस शताब्दी के प्रारम्भ में श्री स्याद्वाद महाविद्यालय का अभ्युदय अद्यावधि विद्वत् परम्परा के संपोषण एवं अभिवर्द्धन के लिए एक गौरवपूर्ण उपलब्धि है तो दूसरी ओर अनेक संस्थाओं ने जैन सांस्कृतिक ऐतिहासिक परम्परा को शोध-खोज के माध्यम से नए आयाम दिए हैं। उनमें वीर सेवा मन्दिर दिल्ली द्वारा ऐतिहासिक महत्त्व के आलेख जैन परम्परा के लिए ऐसी धरोहर है, जिसके महत्त्व को रेखांकित करना कठिन नहीं तो दुरूह अवश्य है।
वीर सेवा मन्दिर के संस्थापक आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार की दीर्घकालिक परिकल्पना को ‘अनेकान्त' पत्र ने मूर्त रूप प्रदान किया है। तत्कालीन परिस्थिति का वास्तविक परिदृश्य उपस्थित करते हुए आ. मुख्तार सा. ने अपने सम्पादकीय में लिखा था 'खेद है, जैनियों ने अपने आराध्य देवता ' अनेकान्त' को बिल्कुल भुला दिया है और वे आज एकान्त के अनन्य उपासक बने हुए हैं, उसी का परिणाम है उनका सर्वतोमुखी पतन, जिसने उसकी सारी विशेषताओं पर पानी फेर कर उन्हें संसार की दृष्टि में नगण्य बना दिया है। अस्तु, जैनियों को फिर से अनेकान्त की प्राण प्रतिष्ठा कराने और संसार को अनेकान्त की उपयोगिता बताने के लिए ही यह पत्र अनेकान्त नाम से निकाला जा रहा है। '