Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ 24 आधार पर प्रस्तुत किया है। 25 प्रस्तुत अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि स्याद्वाद वस्तु-धर्म विश्लेषण का व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक सिद्धान्त है, और अपनी इन विशेषताओं के कारण ही यह उत्कृष्ट एवं लोकप्रिय भारतीय चिंतन का प्रतिनिधित्व करता है। 1 उत्पादव्ययध्रौव्युक्तं सत् (तत्त्वार्थ, 5, 29 ) 2. अनेकान्तात्मकार्थं कथन स्याद्वाद : (आचार्य अकलङ्ग; लघीयस्त्रय, 62 ) 3 मधुकर मुनि, अनेकान्तदर्शन, पृ 20 4 स च लिडन्त ( तिडन्त) प्रतिरूपको निपातः । तस्यानेकान्तविधिचारादिषु बहुएत्रर्थेषु सभवत्स, डह विवक्षावशात् अनेकान्तार्थो गृह्यते । (तत्वार्थवार्तिक, 4, 42 ) सियासों णिवायन्तादो जदि वि अणेगेस, अत्थेस, वट्टदे, तो वि एत्थ कत्थ वि काले देसेत्ति एदंसु अत्थेसु, बट्टमाणो धन्तव्वो । (कसायपाहुड, भाग 9, पृष्ठ 360) स्याद्वादो निश्चितार्थस्य अपेक्षित याथातथ्य वस्तुवादित्वाद। (तत्वार्थ वार्तिक 19 ) स्वपरात्मोपादानापोहन व्यवस्थापाद्य हि वस्तुनो वस्तुत्वम् (तत्त्वार्थवार्तिक, 16 ) 7 8 मुनिनथमल जैन न्याय का विकास, पृ 67 9 सूयगडो, 114.22 5 6 10 कसायपाहुड भाग 1, पृष्ठ 281 11 भगवई 12, 43, 54 12 मुनि नथमल जैन न्याय का विकास, पृ 68 13 14 मुनि नथमल जैन न्याय का विकास, पृ 70 15 वही, पृष्ठ 70-71 16 17 तत्त्वसग्रह, 311-326 सप्तभिः प्रकारैर्वचनविन्यासः सप्तभगी (स्याद्वाद-मञ्जरी) यशोविजय, जैनतर्क भाषा, 19-20 अनेकान्त-55/4 18 बह्मसूत्र शाङ्करभाष्य, 2233 19 एकस्मिनवस्तुनि अस्तित्वानस्तित्वादेर्विरूद्धस्यच्छायातपवद्युगपदसभवात् (शारीरकभाष्य, 2239) 20 S Radhakrishnan, Indian Philosophy, Vol 1, P304 21 स्वरूपद्रव्यक्षेत्रकालभावैः सत्त्वम् पररूपद्रव्यक्षेत्रकालभावैस्त्वस्त्वम्, तदा क्व विरोधावकाशः (स्याद्वाद मञ्जरी, पृ 1761 तुलनीय, स्याद्वादमुक्तावली, 119-22) 22 मधुकरमुनि, अनेकान्तदर्शन, पृ. 25-26 23 TG Kalghatgi, Jaina View of Life, PP 23-32, 24 अनेकान्तदर्शन, पृ 27 तथा जैनान्याय का विकास, पृ. 72 25 अनेकान्तदर्शन, पृ. 29 26 जैनन्याय का विकास, पृ 75-77 कुलपति राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274