Book Title: Anekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 233
________________ 26 अनेकान्त-55/4 रूप में लिखा। रचना संबंधी पद्य निम्न प्रकार है"संवत ठारासै निवासी अखतीज गुरुवार का दिन में सांगानेरिसुथान मांहि संगही भवनदास धरि मन में। ताका बलि सुकरी कथा या चौपई दुहा छंद अडिल में मन थिरता सूं देखि वचनका करि धरी भाषा या तन में॥ (1/198)" ज्यो बंचो सो सोधि अक्षरकू भूलि-चूकि सब माफि जथी ज्यो, चीठी सौपी ज्ञान झांझरी ताकी छाया भाषा कीज्यो। पुसपाम सु फूल बीच जो लेकरि अक्षर लगता धरिजे, जसरथ सुत के आदि के दोउ मेलि नांव करता को लीजो। रचनाकार ने अपना नाम अंतिम दो पंक्तियों में दिया है- पुष्पों में से फूल का बीच का अक्षर कमल, आगे अक्षर 'या' जसरथसुत-राम। मयाराम-रचनाकार रचना की प्रतिलिपि सं. 1890 में चम्पाराम छाबड़ा ने की " इति श्री मनिराजा की कथा संपूर्ण।। मिती ज्येठसुदी 14 दीतवार संवत् 1890 चम्पाराम छाबड़ा जो बाचोजीन पंथा जुक्त वंचिज्यो" रचना ढूंढारी भाषा में है-दोहा, ढाल, चौपाई अडिल्ल आदि छंदों का प्रयोग किया गया है। उक्त रचना के दोहा सं. 90 से प्रतीत होता है कि मुनिगण संध्या समय सामायिक में बैठे हैं-श्रद्धालुओं को उनके आने की सूचना मिली तो रात्रि को ही दर्शनार्थ पहुंच गये तथा विनती पाठ पढ़ कर आ गये। दूसरे दिन माघ शु. 6 मंगलवार को प्रात: दो घड़ी दिन चढ़ने के पश्चात् सामायिक से उठकर जनता को दर्शन दिये, जनता को धर्मोपदेश दिया। मुनिराज जयपुर में सूरजपोल दरवाजे बाहर (गलतारोड) मोहनबाड़ी में विराजे थे। आहार की बेला होने पर नगर में आहार लेने आये।

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