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अनेकान्त/55/3
1. अनेकान्त वर्ष 1, किरण 1, पृष्ठ 57 ___ 'जैन हितैषी' ने जिस शोध खोज का शुभारम्भ किया था उसे अनेकान्त ने नए क्षितिज प्रदान किए। समन्तभद्राश्रम नाम से प्रारम्भ हुई संस्था वीर सेवा मन्दिर के रूप में भी अपने लक्ष्य पर कायम रही और 'समन्तात् भद्रः' स्वरूप को स्थापित करने मे अनेकान्त ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। __ अनेकान्त के प्रसिद्ध इतिहास सम्बन्धी आलेखों की संख्या 693 है, जिसमें पुरातत्त्व, संस्कृति, स्थापत्य, एवं कला सम्बधित लेख गर्भित हैं। विगत 72 वर्षों की दीर्घ जीवन में अनेकान्त ने अनेक उतार-चढ़ावों का सामना किया है। समाज के उदासीनभाव, प्रतिगामी स्वभाव और साहित्य इतिहास के प्रति व्याप्त घोर उपेक्षा को भी सहन करना पड़ा है। अनेकान्त ने वी.नि. संवत् 2456 (1929) में समन्तभद्राश्रम (वीर सेवा मन्दिर) आ. जुगलकिशोर जी मुख्तार के दिशा-निर्देशन में मासिक के रूप में अपना सफर प्रारम्भ किया। तदुपरान्त आर्थिक संकटों में उलझ गया। सरसावा में स्थानान्तरित होने के बावजूद आठ वर्षों तक निष्क्रिय रहा। बाबू छोटेलाल कलकत्ता तथा लाला तनसुखराय जैन के आर्थिक सम्पोषण से 1938 से पुनः प्रकाशित किया गया। एक वर्ष भारतीय ज्ञानपीठ ने भी संचालन किया। जुलाई 1949 में फिर आर्थिक संकट के कारण दो वर्ष तक अपने सफर को इसे रोकना पड़ा। 1957 तक चलकर पुन: 5 वर्ष के लिए रुकना पड़ा। 1962 से 1975 तक द्वैमासिकी के रूप में प्रकाशित होता रहा। 1975 से इसका सफर रुका नहीं और त्रैमासिक के रूप में प्रकाशित होता आ रहा है। अनेकान्त में प्रकाशित इतिहास विषयक महत्त्वपूर्ण आलेख की अकारादि क्रम से सूची निम्नांकित है
इतिहास पुरातत्त्व संस्कृति, स्थापत्य, कला
अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान -परमानन्द जैन शास्त्री 19276. 19/326 अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान -पं. परमानंद शास्त्री 20/98, 20/117, 202233
अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान -परमान्द शास्त्री 21/46, 21/91, 21/185 अचलपुर के राजा श्रीपाल ईल -नेमचन्द धन्नूसा जैन 19/105 अतिशय क्षेत्र-एलोरा की गुफाएँ