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अनेकान्त-55/4
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परस्पर अविनाभाव संबंध है-इस स्थापना के आधार पर अनेकान्त का सिद्धान्त अनन्त विरोधी युगलों को युगपत रहने की स्वीकृति देता है।12 पर इन विरोधी युगलों को एक साथ व्यक्त नहीं किया जा सकता। इनके युगपत् प्रतिपादन के लिये भाषा में क्रमिकता और सापेक्षता चाहिए। यह सापेक्ष कथन या प्रतिपादन शैली स्याद्वाद है, जिसके अस्ति (विधि), नास्ति (निषेध) और अवक्तव्य आदि के भेद से अधोलिखित सात विकल्प हैं :
1. स्याद् अस्ति एव - किसी अपेक्षा से है ही। 2. स्याद् नास्ति एव - किसी अपेक्षा से नहीं ही है। 3. स्याद् अस्ति एव स्याद् नास्ति एव - किसी अपेक्षा से है ही और
किसी अपेक्षा से नहीं ही है। 4. स्याद् अवक्तव्य एव - किसी अपेक्षा से अवक्तव्य ही है। 5. स्याद् अस्ति एव स्याद् अवक्तव्य एव -- किसी अपेक्षा से है ही और
किसी अपेक्षा से अवक्तव्य ही है। 6. स्याद् नास्ति एवं स्याद् अवक्तव्य एव - किसी अपेक्षा से नहीं ही
है और किसी अपेक्षा से अवक्तव्य ही है। 7. स्याद् अस्ति एव स्याद् नास्ति एव स्याद् अवक्तव्य एव - किसी
अपेक्षा से है ही, किसी अपेक्षा से नहीं ही है और किसी अपेक्षा से
अवक्तव्य ही है। ये वचन विकल्प सप्तभंगी के नाम से प्रसिद्ध है। इनमें प्रथम चार मूल अंग है और अंतिम तीन इन्हीं के विस्तार हैं। मूल अंगों के स्पष्टीकरण के लिये एक व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत है
तीन व्यक्ति एक स्थान पर खड़े हैं। किसी आगन्तुक ने पूछा- 'क्या आप इनके पिता हैं? उसने उत्तर दिया-'हाँ (स्यादस्मि)-अपने इस पुत्र की अपेक्षा से मैं पिता हूँ किन्तु इन पिताजी की अपेक्षा से मैं पिता नहीं हूँ (स्यादस्मि-नास्मि), किन्तु एक साथ दोनों बातें नहीं कही जा सकती (स्यादवक्तव्यः) इसीलिये क्या कहूँ?'