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अनेकान्त/55/3
शरीर, मन, या आखों में से किसी की माध्यम से सेवन करे व्यसनी तो हो ही गया । इतिहास इस व्यसन के कथानकों से भरा पड़ा है। रावण सीता की कहानी, सूर्पनखा की कहानी, राजा द्वारा अपनी रानी को अमरबेल देने की कहानी, कैसे रानी से वेश्या तक वह बेल पहुंच जाता है। राजा यशोधर की कहानी जिसमें रानी कुबड़े के प्रेम में फंसी होती है। आज भी ढेरो कथानक हैं, जो इस व्यसन की विभीषिका को दर्शाते हैं।
आधुनिकता से परिपूर्ण जीवन में हम आए दिन रिश्तों के समीकरण बनते बिगड़ते देखते हैं कपड़ों की तरह संबंधो को बदला जा रहा है। काम की पीड़ा स्त्री-पुरूष के विवेक को हर लेती है वासना की आंधी किसे कहाँ गिरा दे कुछ पता नहीं। घर के घर उजड़ जाते हैं आज घर रूपी नीव कमजोर पड़ रही है। परिवार जैसी संस्था खतरे में है सबंधों में विश्वास की कमी आती जा रही है किसका मन कहां आ जाये पता नहीं। उन्मुक्त खुली संस्कृति ने इस व्यसन को बढ़ावा ही दिया है। आज युवा पीढ़ी शादी को बंधन समझने लगी, बिना शादी किये ही साथ रहना महानगरों की संस्कृति में पनप रहा है रही सही कसर टी. वी. इंटरनेट ने पूरी कर दी । यौन संबंधो के खुलापन से हम युवा पीढ़ी को कितना बचा पायेंगे यह सवाल हमारे सामने है। आज जिस तरह का वातावरण बन रहा है उसमें हमारी धार्मिक / नैतिक शिक्षायें और हमारे गुरुओं के उपदेश ही हमें इस सामाजिक प्रदूषण से बचा सकते हैं।
इस तरह ये सातों व्यसन पापों का पिटारा है नरक का कारण है और अशांति, तनाव के जनक हैं। अतः आवश्यकता है स्वयं संस्कारवान बनें बच्चों में भी नैतिक / धार्मिक संस्कार विकसित करें और गुरुओं की वाणी सुन जीवन को सुधारने का प्रयास करें तभी व्यसन मुक्त हो जीवन कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- शिक्षक निवास
श्री के. के. जैन कॉलेज, खतौली