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अनेकान्त/55/3
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चोरी करना :- 'अदत्तादानम् स्तेयम्' अर्थात बिना दी हुई वस्तु को कोई ग्रहण करता है तो वह चोरी है। किसी वस्तु को छल कपट से छीनने पर दूसरों को दुख हो उसे भी चोरी कहेंगे ।
चोरी करने वाला धन की तीव्र लालसा में हिंसा तक कर देता है। चोरी से उपार्जित धन का पाप चोरी करने वाले को लगता है, सारे परिवार को नहीं । डाकू बाल्मीकि की कहानी यहां स्मरण आ रही है जब एक संत ने पूछा कि तुम डाका डालते हो तो इसका पाप क्या परिवार के लोग उठायेंगे परीक्षा ली गयी। डाकूं ने मरने का नाटक किया साधु आया उसने कहा कि ठीक कर दूंगा ये कटोरी का पानी पी लो पर पीने वाला मर जायेगा कोई पानी पीने को तैयार नहीं हुआ मां बाप भाई बहिन यहां तक कि पत्नी ने भी मना कर दिया। तब डाकू की आंख खुलती है और वह साधु बन जाता है एक व्यक्ति सुबह से शाम तक कितनी मिथ्या बातें करता है कितने झूठ बोलता है कितनी नैतिकता से पैसे कमाता है ध्यान रखना इस पाप का भागीदार वह स्वयं है।
बदलते परिवेश में चोरी करने के अनेक तरीके विकसित हो गये हैं कर्मचारी आफीसर रिश्वत लेकर, शिक्षक स्कूल में न पढ़ाकर ट्युशन आदि से, खाद्य व्यापारी खाद्य में मिलावट, कम तौलना, न. 2 की कमाई करना, पुलिस आदि का भी रिश्वत लेना सरकारी कर्मचारियों के तो सारे काम कागज पर ही हो जाते हैं कहां तक गिनाये जायें चोरी और चोरी करने वालों की कोई कमी नहीं है। सर्वत्र भ्रष्टाचार, बेईमानी, रिश्वत का बोलबाला हो गया है कानून अंधा होता जा रहा है। फिर भी संस्कारवान शिक्षा और मुनियों द्वारा उपदेशों को सुनने से एक बात तो सामने आती है कि जो तुम गलत कर रहे हो तुम्हारी आत्मा - मन तो जान ही रहा है अतः ईमानदारी से धन कमाओ और जीवन को सार्थक बनाओ सच भी है
अन्यायोपार्जितं वित्तं दश वर्षाणि तिष्ठति । जायतेकादशे वर्षे समूलं विनश्यति ॥
परस्त्री सेवन :- यह एक ऐसा व्यसन है जिसमें व्यक्ति अपनी नैतिकता का ह्रास कर लेता है विषय वासना में फंसा व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरूष वह