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अनेकान्त/55/3
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बचाना है तो हमारे दायित्व बढ़ते दिखाई देते हैं पहल हमें ही करनी है। वेश्यागमन :- 'न नरकं वेश्यां विहायापरम्' अर्थात वेश्या के समान कोई दूसरा नरक नहीं है। जहां अन्य व्यसन नरक का द्वार है वहां वेश्यागमन साक्षात् नरक है। वेश्यागमन से शरीर एवं आत्मा दोनों का पतन होता है। बाजारू स्त्री अर्थात् वेश्या धन और वासना की पूर्ति हेतु कुछ भी कर सकती है। पुरुषों को प्रेम जाल में फंसाकर व्यक्ति की बुद्धि हरण कर नीच से नीच कर्म करने की
ओर प्रेरित कर देती है। चंपापुरी के चारुदत्त के वेश्यागमन की कहानी से कौन परिचित नहीं है। चारुदत्त महान स्वाध्यायी, साधुसंगति, धार्मिक चर्चायें, तत्त्व चिंतन-मनन करने वाला था उसके परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। पर तत्त्व चिंतन करने वाले को पत्नी भी मोह में न बांध सकी तब उसके मामा चारुदत्त को वंसत सेना नामक वेश्या से मिलवाते है उस वेश्या का ऐसा जाद चलता है कि सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है और वह वेश्या के प्रति समर्पित हो जाता है और अपना सब कुछ लुटा देता है। इसी तरह एक सुंदरी के प्रेम में फंसकर युवक अपनी मां का कलेजा लाकर दे देता है। __वेश्यागमन व्यसनी व्यक्ति परिवार का नाश तो करता ही है अपने आप का भी नाश करता है। विभिन्न बीमारियों का शिकार हो जाता है। एड्स जैसी बीमारी मानो प्रवृत्ति की तरफ से अनैतिक आचरण करने वालों को दंड स्वरूप है। आज एड्स जैसे भंयकर बीमारी से विश्व लड़ रहा है युवाओं में इस बीमारी के बढ़ते हमारी नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है कि इंसान कितना विषय भोगी हो गया है।
आज इस व्यसन के अनेक पहलू समाज के सामने अनेक नामों और कामों से सामने आ रहे हैं आधुनिकता के परिवेश में इन्हें सेक्स वर्कर नाम दे दिया गया है। होटल, क्लब, गेस्ट हाऊस के माध्यम से इस व्यसन की एक नयी संस्कृति पनप रही है जो युवा पीढ़ी को आर्कषित कर रही है। आधुनिक उन्मुक्त वातावरण में अन्य व्यवसाय की तरह इसे भी व्यवसाय माना जाने लगा है। इस सबका प्रभाव यह होगा कि हमारे आदर्श हमारी नैतिकता धरी की धरी रह जायेगी।