________________
कुन्दकुन्द के विषय में जनश्रुति विषयक अवधारणा __ आ. कुन्दकुन्द सर्वमान्य श्रुतधर आचार्य हैं। उनके अवदानों से प्रभावित होकर श्रद्धातिरेक में उनके बहुमान में जनश्रुति प्रचलित हुई कि वे विदेह गमन करके सीमंधर स्वामी से बोध को प्राप्त हुए थे, परन्तु इस विषय में शास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध नहीं है। डा. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने लिखा है- .
"जहाँ तक विदेह यात्रा की बात है, उसके साधक यद्यपि अभिलेखीय या अन्य ऐतिहासिक प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हुए, किन्तु आचार्य देवसेन, आ. जयसेन
और श्रुतसागर सूरि के उल्लेख बतलाते हैं कि आचार्य कुन्दकुन्द विदेह गए थे..... सीमंधर स्वामी से प्राप्त दिव्यज्ञान का श्रमणों को उपदेश दिया था।"
-(तीर्थकर महावीर और आचार्य परम्परा भाग-2, प्र.-105) उपर्युक्त उल्लेख से भी यह स्पष्ट है कि उनका (कुन्दकुन्द) विदेहगमन शास्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर सिद्ध नहीं होता।
अस्तु, इस विषय में शास्त्रीय प्रमाणों के उल्लेख अन्वेषणीय हैं। इस सन्दर्भ में ज्ञानवृद्ध पं. पद्मचन्द्र जी शास्त्री जी ने आ. देवसेन (नवमी शती) की गाथा के व्युत्पत्तिलभ्य शब्दार्थ के आधार से उनके निराधार जनश्रुति पर ऊहापोह किया है। जो गम्भीरता के साथ मननीय है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वे अपने गुरु भद्रबाहु को गमक गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं। (बोधपाहुड, गाथा-61-62) __'गमक शब्द का अर्थ शब्द कल्पद्रुम में, 'गमयति, प्रापयति, बोधयति वा गमक' गम + णिच् + ण्वल बोधक मात्र या सुझाव देने वाला अथवा तत्त्व प्राप्ति के लिए प्रेरणा करने वाला बताया गया है। अत: जिस प्रकार गमक शब्द परम्परा प्राप्त श्रुतकेवली के लिए व्यवहृत माना जाता है उसी प्रकार सीमंधर का अर्थ मर्यादा का पालन करने वाला ग्रहण करने से एक ओर शास्त्रीय सिद्धान्त की बाधा दूर हो जाती है तो दूसरी ओर आचार्य कुन्दकुन्द के बहुमान में भी अभिवृद्धि होती है। अत: आ. देवसेन के गाथागत अर्थ के विषय में प्रचलित अवधारणा कुन्दकुन्द विदेह गए थे के विषय में खुलासा होता है क्योंकि गाथा में मात्र सीमंधर स्वामी को धोतित करने वाला पद है, विदेहगमन सूचक नहीं।
-सम्पादक