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अनेकान्त/55/3
को अहिंसाव्रत की रक्षार्थ रात्रि भोजन त्याग और अभक्ष्य भक्षण का त्याग आवश्यक है। 2. सत्याणुव्रत :- प्रमाद के कारण जीवों को पीडादायक गर्हित वचन बोलना असत्य पाप है। सत्याणुव्रती ऐसे असत्य का त्यागी होता है। धर्मरत्नाकर में कहा गया है कि जिस कथन से अविश्वास उत्पन्न होता है, दण्ड भोगना पड़ता है और निरपराधी मनुष्य को सन्ताप उत्पन्न होता है ऐसे अप्रशस्त वचन रूप असत्य का निर्मल बुद्धि वाले मनुष्य को दूर से ही परित्याग कर देना चाहिए। समन्तभद्राचार्य ने सत्याणुव्रत का लक्षण बताते हुए कहा है कि स्थूल झूठ जो न तो स्वयं बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है तथा जिस वचन से विपत्ति आती हो ऐसा वचन न आप बोले न दूसरों से बुलवावे उसे सज्जन सत्याणुव्रत कहते हैं। सत्याणुव्रत के अतिचार :- मिथ्योपदेश (झूठा एवं अहितकारी उपदेश), रहोभ्याख्यान (एकान्त की स्त्री-पुरुष की क्रिया का प्रकट करना), कूटलेख क्रिया (दबाववश झूठी लिखापढ़ी), न्यासापहार (धरोहर भूल जाने पर न देना या कम मागने पर कम देना) तथा साकार मन्त्र भेद (आकृति से पराभिप्राय जानकर प्रकट कर देना) ये पाँच सत्य व्रत के अतिचार हैं। 26 सत्याणुव्रत की भावनायें :- सत्याणुव्रत की रक्षा के लिए श्रावक को क्रोध, लोभ, भय एवं हास्य का त्याग तथा शास्त्रानुकूल निर्दोष वचन बोलने की भावना भाना चाहिए। 3. अचौर्याणुव्रत :- बिना दी हुई वस्तु का लेना चोरी है। इसका अभिप्राय यह है कि बाह्यवस्तु के ग्रहण करने के संक्लेश परिणामों का नाम चोरी है, भले ही वस्तु ग्रहण हो या न हो। 28 स्थूल चोरी का त्याग अचौर्याणुव्रत है। समन्तभद्राचार्य का कहना है कि रखे हुए, गिरे हुए अथवा भूले हुए या धरोहर रखे गये पर द्रव्य को हरण न करना, न दूसरों को देना अचौर्याणुव्रत है। स्वामी कार्तिकेय के अनुसार वह अचौर्याणुव्रती है जो बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य में नहीं लेता है, दूसरों की छूटी हुई वस्तु को नहीं उठाता है, थोड़े