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अनेकान्त/55/3
मांस खाना :- कल्पना भी नहीं की गयी थी कि 21वीं सदी आते आते मानव इतना हिंसक हो जायेगा जितना कि वह अपनी असभ्य अवस्था में भी नहीं था। महावीर और गांधी के अहिंसावादी देश में आज चारों ओर हिंसा ही हिंसा दिखाई दे रही है।
भोजन प्रत्येक प्राणी की अविवार्य आवश्यकता है। प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया पर रसना इन्द्रिय की लोलुपता और आधुनिकता के व्यामोह में हम शाकाहारी भी जाने-अनजाने अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। प्राणीमात्र के प्रति दया भाव रखने वाला जैन धर्म भक्ष्य-अभक्ष्य के संबंध में सदैव सचेत करता रहा है। वैज्ञानिक परीक्षणों से भी सिद्ध हो गया है कि मांसाहार स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है एवं विभिन्न बीमारियों को जन्म देता है। _ 'जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन' कहावत वर्षों से हमारे आहार चर्या रूपी धरोहर के रूप में चली आ रही है। हम जैसा खायेंगे हमारे मन की परिणति वैसी ही होगी। यदि हम मांसाहारी अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करेंगे तो हमारे परिणाम हिंसात्मक ही होंगे। संसार में जितने भी हिंसात्मक कार्य हो रहे है उन सबके पीछे मांसाहार भी एक कारण है।
अनेक वैज्ञानिक एवं सामाजिक सर्वेक्षण एवं शोधों से स्पष्ट हो गया है कि शाकाहार ही उत्तम आहार है। शाकाहार शांतिकारक, हानिरहित, सुखी जीवन शैली की पहचान है। हमारे शास्त्रों में इस सबंध में अनेक कथानक हैं जैसे-राजा बक जिसने बच्चों तक का मांस खाया उसकी क्या दुर्दशा हुई। एक मांसाहारी भील की कथा जिसने मुनिराज के कहने पर कौए का मांस छोड़ दिया।
आज देश में अंधाधुंध पशुओं का कत्ल हो रहा है, मांस का निर्यात हो रहा है जो हमारी अहिंसावादी संस्कृति के विपरीत है। भाषण बाजी, रैलियां जुलूसों से काम नहीं चलने वाला, शाकाहारियों का एक बहुत बड़ा समुदाय है जनचेतना जागृत कर सरकार पर दबाब डाल सकते है। शाकाहारी जन प्रतिनिधियों का इस सबंध में विशेष उत्तरदायित्व है। तभी सरकार की नीतियों में हम परिवर्तन ला सकते हैं।