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अनेकान्त/55/2
3. मितवादी- (1) जीवों की परिमित संख्या मानने वाले। इसका विमर्श
स्याद्वादमंजरी में किया गया है। 36 (2) आत्मा को अंगुष्ठपर्व जितना अथवा श्यामाक तंदुल
जितना मानने वाले। यह औपनिषदिक अभिमत है। (3) लोक को केवल सात द्वीप-समुद्र का मानने वाले।
यह पौराणिक अभिमत है। 4. निर्मितवादी-नैयायिक, वैशेषिक आदि लोक को ईश्वरकृत मानते हैं। 5. सातवादी बौद्ध
6. समुच्छेदवादी-प्रत्येक पदार्थ क्षणिक होता है। दूसरे क्षण में उसका उच्छेद हो जाता है।
7. नित्यवादी-सांख्याभिमत सत्कार्यवाद के अनुसार पदार्थ कूटस्थ नित्य है। कारणरूप में प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व विद्यमान है। कोई भी नया पदार्थ उत्पन्न नहीं होता और कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता। केवल उनका आविर्भाव तिरोभाव होता है।
8. असत् परलोकवादी-चार्वाक दर्शन मोक्ष या परलोक को स्वीकार नहीं करता।
चूर्णिकार ने सांख्य दर्शन और ईश्वर को जगत्कर्ता मानने वाले वैशेषिक दर्शन को अक्रियावादी दर्शन माना है तथा पंचभूतवादी, चतुर्भूतवादी, स्कन्ध मात्रिक, शून्यवादी और लोकायतिक-इन दर्शनों को भी अक्रियावाद के अन्तर्गत परिगणित किया है। _वैशेषिक एवं सांख्य दर्शन आत्मवादी है फिर उन्हें अक्रियावादी क्यों कहा गया है? चूर्णि में इसका समाधान नहीं है। सांख्य दर्शन में आत्मा कर्म का कर्ता नहीं है और वैशेषिक दर्शन में आत्मा कर्मफल भोगने में स्वतंत्र नहीं है। इसी अपेक्षा से चूर्णिकार ने दोनों दर्शनों को अक्रियावाद की कोटि में परिगणित किया है, ऐसी सम्भावना की जा सकती है। यह आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का अभिमत है।