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अनेकान्त/55/2
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रूप से अक्रियावादी कहा है22 तथा स्थानांग में अक्रियावाद के आठ प्रकार में एक अनेकवादी है। उसके उदाहरण के रूप में आचार्य महाप्रज्ञजी ने वैशेषिक दर्शन का उल्लेख किया है।23 अक्रियावाद ___ जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते उसे अक्रियावादी कहा जाता है। केवल चित्त शुद्धि को आवश्यक एवं क्रिया को अनावश्यक मानने वाले अक्रियावादी कहलाते हैं। वे बौद्ध दार्शनिक हैं।24 सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में बौद्धों को क्रियावादी कहा गया है तथा समवसरण अध्ययन की चूर्णि में बौद्धों को अक्रियावादी कहा गया है। मुनि जम्बूविजयजी ने अपेक्षाभेद के आधार पर समन्वय करने का संकेत किया है तथा अंगुत्तर निकाय में बुद्ध को अक्रियावादी कहा है, ऐसा भी उन्होंने उल्लेख किया है। अक्रियावादी क्रिया अर्थात् अस्तित्व का सर्वथा उच्छेद मानते हैं। उनका अभिमत है कि सभी पदार्थ क्षणिक हैं। किसी भी क्षणिक पदार्थ की दूसरे क्षण तक सत्ता नहीं रहती अत: उसमें क्रिया की सम्भावना ही नहीं है। इसीलिए आत्मा आदि नित्य पदार्थों का अस्तित्व नहीं है। कोकुल, द्विरोमक, काण्ठेवि, सुगत आदि प्रमुख अक्रियावादी हैं। 28
नियुक्तिकार ने 'नास्ति' के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है। नास्ति के चार फलित होते हैं1. आत्मा का अस्वीकार 2. आत्मा के कर्तृत्व का अस्वीकार 3. कर्म का अस्वीकार और 4. पुनर्जन्म का अस्वीकार। ___अक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ एवं नास्तिकदृष्टि कहा गया है। स्थानांगवृत्ति में अक्रियावादी को नास्तिक भी कहा गया है। 12
स्थानांग सूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकार बतलाए गए हैं1. एकवादी-एक ही तत्त्व को स्वीकार करने वाले।