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अनेकान्त/55/2
2. अनेकवादी-धर्म और धर्मी को सर्वथा भिन्न मानने वाले अथवा सकल
पदार्थों को विलक्षण मानने वाले, एकत्व को सर्वथा अस्वीकार करने वाले। 3. मितवादी-जीवों को परिमित मानने वाले। 4. निर्मितवादी-ईश्वरकर्तृत्ववादी। 5. सातवादी-सुख से ही सुख की प्राप्ति मानने वाले, सुखवादी। 6. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी। 7. नित्यवादी-लोक को एकान्त मानने वाले। 8. असत् परलोकवादी-परलोक में विश्वास न करने वाले। ___ स्थानांग में अक्रियावाद का प्रयोग अनात्मवाद एवं एकान्तवाद दोनों अर्थों में हुआ है। इन आठ वादों में छह वाद एकान्तदृष्टि वाले हैं। समुच्छेदवाद तथा असत्परलोकवाद-ये दो अनात्मवाद हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने धर्म्यश की दृष्टि से जैसे चार्वाक को नास्तिक कहा है, वैसे ही धर्माश की दृष्टि से सभी एकान्तवादियों को नास्तिक कहा है
धयंशे नास्तिको ह्येको, बार्हस्पत्यः प्रकीर्तितः।
धर्माशे नास्तिका ज्ञेयाः सर्वेऽपि परतीर्थिकाः।।" स्थानांग में प्रस्तुत वादों का संकलन करते समय कौन-सी दार्शनिक धाराएं सामने रही होगी, कहना कठिन है, किंतु वर्तमान में उन धाराओं के संवाहक दार्शनिक निम्न है1. एकवादी- (1) ब्रह्माद्वैतवादी-वेदान्त।
(2) विज्ञानाद्वैतवादी-बौद्ध।
___ (3) शब्दाद्वैतवादी-वैयाकरण। ब्रह्माद्वैतवादी के अनुसार ब्रह्म, विज्ञानाद्वैतवादी के अनुसार विज्ञान और शब्दाद्वैतवादी के अनुसार शब्द पारमार्थिक तत्त्व है, शेष तत्त्व अपारमार्थिक है, इसीलिए ये सारे एकवादी हैं।
2. अनेकवादी-वैशेषिक अनेकवादी दर्शन है। उसके अनुसार धर्म-धर्मी, अवयव-अवयवी भिन्न-भिन्न है।35