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अनेकान्त/55/3
गए और इसकी पुष्टि में उन्होंने मनमानी, भिन्न-भिन्न कथाऐं रच डाली, जो आगम सम्मत नहीं हैं, उन्हें गढ़कर उनका प्रचार कर दिया-आदि। ऐसा सब इसीलिए हुआ कि लोगों की दृष्टि में विदेह के एक मात्र तीर्थकर सीमंधर स्वामी ही थे जो उन्हें (कुन्द-कुन्द को) बोध दे सकते थे। कथाओं के माध्यम से किन्हीं ने कहा कि उन्हें विदेह देव ले गए तो किन्हीं ने कहा कि चारण मुनि ले गए। एक महान् विद्वान् ने तो यहाँ तक लिख दिया कि बिहार प्रान्त की ओर विदेह है वहीं कुन्द-कुन्द गए आदि।
जबकि इस प्रकार की कथाएँ आगमिक न होकर कल्पना मात्र हैं और इनमें मुनिचर्या विरोधी आदि अनेकों प्रसंग उपस्थित होते हैं। जैसे प्रश्न उठते हैं कि क्या कुन्द-कुन्द स्वामी ने देवों से विमान में बिठाकर विदेह ले जाने को कहा? या फिर देवों ने बलात् उन्हें विमान में बिठा लिया? यदि ऐसा था तो आगम में इसका कहीं तो उल्लेख होना चाहिए था। ऐसी अवस्था में आचार्य को प्रायश्चित भी करना चाहिए था जिसका आगम में कहीं उल्लेख नहीं है। न चारण ऋद्धि या आहारक-शरीर आदि का उल्लेख ही है। यदि आगम में कहीं भी किसी एक का भी उल्लेख हो तो प्रमाण सहित खोजा
जाए।
इसके सिवाय न कहीं कुन्द-कुन्द ने ही अपने विदेहगमन की बात की है और न कहीं सीमंधर तीर्थंकर का उपकार ही स्मरण किया है। जबकि वे बार-बार श्रतुकेवली (भद्रबाहु स्वामी) का स्मरण करते रहे हैं। कुन्द-कुन्द स्वामी के विदेह गमन और सीमंधर स्वामी के पास जाने की मान्यता वालों के लिए क्या यह बिडम्बना नहीं होगी कि कुन्द-कुन्द स्वामी तीर्थकर सीमंधर का स्मरण छोड़ बार-बार श्रुतकेवली का उपकार मानते रहे जबकि श्रुतकेवली उनसे लघु होते हैं।
प्राकृत के महान् शब्दकोष 'अभिधानराजेन्द्र' में 'सीमंधर' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार ही है- “सीमां-मर्यादा पूर्वपुरुषकतां धारयति। न आत्मना विलोपयति यः सः तथा। कतमर्यादा पालके।"