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अनेकान्त/55/2
गया। बाबा ने कहा कि बोरियाँ मत झाडो और एक चादर ऊपर डाल दो जितने आटे की जरूरत हो ले लो तथा घी खत्म हो गया तो कुऐ के पानी से ही घी का काम चलाओ। इस अपार समुदाय के लिए भोजन पानी की सारी व्यवस्थायें बाबा की चमत्कारी घटनायें हैं बाबा का तपोबल-चरित्रबल विद्याबल इतना तीव्र था कि जैन-जैनेतर समाज विशेष प्रभावित हुआ। परिणाम स्वरूप भगवान् ऋषभदेव ओर बाबा ऋषभदास के हजारों अनन्य भक्त बन गये तथा दूर-दूर से यात्री आते हैं और उनकी शुद्ध हृदय से की गई कामनाओं की पूर्ति इस चमत्कारी जिनालय में आकर होती है। तभी से यह क्षेत्र दि0 जैन अतिशय क्षेत्र मरसलगंज के नाम से प्रसिद्ध हो गया है।
वि. सं. 2001 में विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई जिसमें नई वेदियाँ 1008 भगवान शान्ति नाथ, भगवान नेमिनाथ की पद्मासन प्रतिमायें विराजमान की गयी हैं। मेला भूमि की सीमा पर 5 विशाल द्वार बनवाये गये हैं जिन्हें श्री ऋषभदेव द्वार, श्री दौलतराम द्वार, श्री मानिक द्वार, श्री अभयद्वार एवं श्री विजय द्वार के नाम से जाना जाता है। मेला भूमि के बीच में अंहिसा स्तम्भ कलात्मक एवं सुदीर्घ बना हुआ है। भीतर वाले मन्दिर के भूभाग में बाबा ऋषभदास की ध्यान गुफा है, जिसमें बाबा की चरण पादुका है। जहां मानव शान्ति का अनुभव करता है, भक्तों का मानना है कि आज भी भगवान आदिनाथ के समक्ष की गई कामनाओं की पूर्ति होती है तथा बाबा की चरणरज लगाने से प्रेत-बाधायें दूर होती है। यहां प्रतिवर्ष भगवान ऋषभदेव की पावन जन्म जयन्ती एक विशाल मेले के रूप में मनाई जाती है।
बी-677 कमलानगर, आगरा
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