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अनेकान्त/55/2
9. बहु जनपद मीझार तु वीदेह देस रूपडो ए।
कुंडलपुर सोहि चंग तु पुरुष नामी जीम ए। ते नयर तणु नाथ तु कासप गोत्र धणी ए। सीधारथ भूप जाणंतु हरिवंस सिरोमणि ए।। ते भूप तणी पटरांणी तु नाम प्रियकारिणी ए।
-महाकवि पद्म (16 वीं शती ई.) महावीररास, 14/6, 10, 16 एवं 21. 10.अथेह भरते क्षेत्रे विदेहविषये शुभे।
भूरिपुरादिसंयुक्ते भाति कुण्डपुरं पुरम्।
-मुनिधर्मचन्द्र (17 वीं शती ई.), गौतमचरित्र, 4/1. "इसी भरतक्षेत्र में एक विदेह देश है जो कि बहुत ही शुभ है और अनेक नगरों से सुशोभित है। उसमें एक कुण्डपुर नाम का नगर है।" 11. अब यह आरजखण्ड महान्, देश सहस बत्तीस प्रमान। तामें दक्षिण दिस गुणमाल, महा विदेहा देश रसाल।।।
सो विदेहवत है समुदाय, सब शोभा ता कही न जाय। कोई तप फल के परभाय, उपजें वर विदेह में आय।। ताके मध्य नाभिवत जान, कुण्डलपुर नगरी सुख खान। पुरपति महीपाल मतिमान, श्री सिद्धारथ नाम महान्। तिनहिं भवन देवी महा, प्रियकारिणी वर नार।। त्रिशला त्रस रक्षा करण, रूप अधिक परताप।।
-कवि नवलशाह, (18 वीं शती ई.) वर्धमानपुराण, 7/84, 85, 91, 103, 108, 109. 12. समण भगवं महावीरे णाते णातपुत्ते णायकुलविणिव्वते विदेह विदहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहे ति कटु.......।
आचाराग, 2/15 सूत्र-746 (ब्यावर संस्करण) "अर्थात् श्रमण भगवान महावीर, जो कि ज्ञातपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे, ज्ञातकुल (के उत्तरदायित्व) से विनिवृत्त थे, अथवा ज्ञात कुलोत्पन्न थे, देहासक्ति रहित थे, विदेहजनों द्वारा अर्चनीय-पूजनीय थे, विदेहदत्ता (माता) के पुत्र थे, विशिष्ट शरीर-वज्रवृषभ-नाराच संहनन एवं समचतुरस्र