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अनेकान्त/55/2
कहे गये हैं। इनमें से तीरभुक्ति या तिरहुत आज भी प्रसिद्ध है, इसी नाम से प्रमण्डल भी बना हुआ है। विदेह की सीमा के सूचक बृहविष्णु पुराण के मूलपद्य इस प्रकार हैं
"गंगाहिमवतोर्मध्ये नदी पंचदशान्तरे। तैरभुक्तिरिति ख्यातो देशः परमपावनः।। कौशिकी तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्य वे। योजनानि चतुर्विशत् व्यायामः परिकीर्तितः।। गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतं वनम्। विस्तारः षोडषटः प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दनः।। मिथिला नाम नगरी तत्रास्ते लोकविश्रुता। पंचभि: कारणे: पुण्या विख्याता जगतीत्रये।।'' बृहदतिष्णुपुगण मिथिलामाहान्थ्य, 2017 10-12
अर्थात् गंगा नदी और हिमालय पर्वत के मध्य पन्द्रह नदियों वाला परमपवित्र तीरभुक्ति (विदेह) नामक देश है। कौशिकी (कोशी) से लेकर गण्डकी (गण्डक) तक विदेह की पूर्व से पश्चिम तक की सीमा 24 योजन (96 कोस) है। गंगा नदी से लेकर हैमवत वन (हिमालय) तक चौड़ाई 16 योजन (64 कोस) है। ऐसे विदेह अथवा तीरभुक्ति देश में तीनों लोकों के विख्यात पाँच कारणों से पुण्यशाली मिथिला नाम की नगरी है।
सम्राट अकबर द्वारा महामहोपाध्याय मिथिलेश पंडित महेश ठाकर के दान-पत्र में भी मिथिला की सह-सीमा गंगा से हिमालय तथा कोशी और गण्डकी नदी के बीच बताई गई है। मूल उद्धरण इस प्रकार है-" अज गंग ता संग अज कोसी ता गोसी''। ( प क भुजबली शास्त्री, जेन सिद्धात भास्कर, 1072 पृ 6. यन् 1941)
आचार्य विजयेन्द्र सूरि ने “वैशाली" नामक अपनी पुस्तक में उक्त उद्धरण दिया है, जिससे स्पष्ट होता है कि विदेह देश गंगा नदी से उत्तर दिशा में था- "गंगाया उत्तरतः विदेहदेश:। देशोऽयं वेदोपनिषत्पुराणगीयमानानां जनकाना राज्यम्। अस्यैव नामान्तरं मिथिला। राज्यस्य राज-धान्यपि मिथिलैव नामधेय बभूव।" (भारत-भूगोल, पृ 37)
इनके अतिरिक्त प्रो. उपेन्द्र ठाकुर, प्रो. कृष्णकान्त मिश्र, भवानी शंकर