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अनेकान्त/55/2
मानी जाती थी और आज भी उसकी आवश्यकता है
"श्वान-सभ्यता-संस्कृति की इसीलिए निन्दा होती है
कि
वह अपनी जाति को देखकर धरती खोदता है, गुर्राता है सिंह अपनी जाति में मिलकर जीता है राजा की वृत्ति ऐसी ही होती है
होनी भी चाहिए।" कोई भी विचार धारा जनभावनाओं पर अवलम्बित होती है।
जन भावना को दो रूपों में देखा जाता है एक सज्जनता के रूप में और दूसरे दुर्जनता के रूप में। यह सज्जनता और दुर्जनता क्या है, इस विषय में आचार्य श्री का मत है कि
"एक-दूसरे के सुख-दु:ख में परस्पर भाग लेना सज्जनता की पहचान है, और औरों के सुख देख, जलना औरों के दुःख को देख, खिलना,
दुर्जनता का सही लक्षण है।" अर्थात् एक-दूसरे के सुख-दुख में भाग लेना सज्जनता है और दूसरों के सुख को देख जलना, ईर्ष्या करना तथा दूसरों के दु:खों को देख हर्षित होना दुर्जनता है। इसी भाव की अभिव्यक्ति "कामायनी" में श्री जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि
औरों को हँसते देखो प्रभु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।। 20 "समाजवाद" शोषण के विरुद्ध विचारधारा का नाम है। जब किसी विचारधारा में दृष्टि भेद समाहित होता है तो वैचारिक संघर्ष भी जन्मते हैं।