________________
अनेकान्त/55/2
37
अशान्ति के अन्तहीन सिलसिला। 26" समाजवाद की प्रतिष्ठापना हेतु सामाजिक जनों को संघर्ष करना होना लेकिन यह ध्यान रहे कि तुम्हारा यह संघर्ष "संहार" में नहीं बदल जाये। पराजय का तात्पर्य मात्र हार मानकर बैठ जाना नहीं है बल्कि जीतने के लिए पुनः प्रयत्न करना है। निरन्तर जीवनोत्कर्ष से ही "उच्च" लक्ष्यों की प्राप्ति संभव होगी। कवि के ये शब्द प्रेरणा के द्योतक हैं
"संहार की बात मत करो, संघर्ष करते जाओ! हार की बात मत करो
उत्कर्ष करते जाओ।27" जब व्यक्ति समष्टि में अपनी पहचान खोजता है तब समाजवाद का जन्म होता है और जब अपने में समष्टि की पहचान खोजता है तो व्यक्तिवाद होता है। व्यक्तिवाद का लक्ष्य वैयक्तिक भोग साधनों की प्राप्ति करना है उसका विश्वास स्वयं के उत्थान पर आधारित है। वह सोचता है
"स्वागत मेरा हो मनमोहन विलासितायें मुझे मिलें अच्छी वस्तुएँऐसी तामसता भरी धारणा है तुम्हारी फिर भला बता दो हमें,
आस्था कहाँ है समाजवाद में तुम्हारी? सबसे आगे मैं
समाज बाद में। 28" नितान्त वैयक्तिक धारणा तामसता है जिसके रहते "समाजवाद" के प्रति आस्था संभव ही नहीं है। समाजवाद सामाजिक विचारधारा से आयेगा। जहाँ यह सोच होगा कि मैं सबसे आगे और बाद में समाज वहाँ समाजवाद कैसे संभव होगा? "समाजवाद" में निहित धारणा को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री कहते हैं कि
"अरे कम - से - कम