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अनेकान्त/55/2
शब्दार्थ की ओर तो देखो ! समाज का अर्थ होता है समूह और समूह यानी सम-समीचीन ऊह-विचार है जो सदाचार की नींव है। कुल मिलाकर अर्थ यह हुआ कि प्रचार-प्रसार से दूर प्रशस्त आचार-विचार वालों का जीवन ही समाजवाद है समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से
समाजवादी नहीं बनोगे।" जैसा कि समाजवाद शब्द से ही अर्थ ध्वनित होता है कि समाज यानी समूह यानी जिसके विचार सम्यक् हैं और जो सदाचार की नींव पर आधारित है ऐसा प्रचार-प्रसार से दूर श्रेष्ठ आचार और श्रेष्ठ विचार वालों का जीवन ही समाजवाद है। तात्पर्य यह है कि समाजवादी बनने के लिए अपने आचार-विचार को श्रेष्ठ बनाना होगा, मात्र समाजवाद-समाजवाद चिल्लाने से कोई समाजवादी नहीं बनेगा।
आज देखने में यही आ रहा है कि जो अपने लिए समाजवादी कहते हैं वे समाजवाद के निहितार्थ का स्पर्श भी नहीं करते। इस स्थिति पर समकालीन विचारधारा के कवि "धूमिल" का मंतव्य है कि
"भूख और भूख की आड़ में चबायी गयी चीजों का अक्स उनके दाँतों पर टूटना बेकार है। समाजवाद उनकी जुबान पर अपनी सुरक्षा का एक आधुनिक मुहावरा है। मगर मैं जानता हूं कि मेरे देश का समाजवाद मालगोदाम में लटकती हुई