________________
36
अनेकान्त/55/2
डॉ. केतकर का मत भी इसी बात से मेल खाता है। उनके अनुसार " जाति व्यवस्था नष्ट करने का तात्पर्य ब्राम्हणों को शूद्र बनाना नहीं, बल्कि शूद्रों को ब्राह्मण बनाना है। 25 "
"समाजवाद" की प्रबल विरोधी विचारधारा "पूंजीवाद " है।
जब पूँजी कुछ - एक लोगों तक सीमित हो जाती है तो अनेक लोगों को रोटी - व - कपड़ा - -मकान जैसी मूल आवश्यकताओं से वंचित रहना पड़ता है। एक बार गांधी जी से एक मारवाड़ी सेठ ने पूछा कि - ". आप सबसे टोपी लगाने के लिए कहते हैं यहाँ तक कि टोपी के साथ आपका नाम जुड़ गया है और लोग उसे गांधी टोपी कहने लगे हैं; फिर आप स्वयं टोपी न लगाकर नंगे सिर क्यों रहते हैं?
गांधी जी ने मारवाड़ी सेठ के प्रश्न को सुनकर उनसे उत्तर के स्थान पर प्रश्न किया कि - " आपने जो यह पगड़ी पहन रखी है इससे कितनी टोपी बन सकती हैं"?
मारवाड़ी सेठ ने उत्तर दिया- " बीस "
गांधी जी ने कहा कि " जब आप जैसा एक व्यक्ति बीस लोगों की टोपी अपने सिर पर रख लेता है तो उन्नीस लोगों को नंगे सिर रहना पड़ता है। उन्हीं उन्नीस लोगों में से मैं एक हूँ।
गांधी जी का उत्तर सुनकर मारवाड़ी सेठ निरुत्तर हो गया। बस पूंजीवाद में यही बुराई है वह दूसरों के अधिकार को हस्तगत कर लेता है। जैन धर्म में इसीलिए " अपरिग्रह" की अवधारणा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है ताकि पूंजीपति अपनी सम्पदा का स्वयमेव त्याग कर सकें। यहाँ गृहस्थ के लिए दान करना नित्यकर्म माना गया है। पूंजीवाद को अशान्ति का अन्तहीन सिलसिला बताते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते है कि
हे स्वर्ण कलश !
परतंत्र जीवन की आधारशिला हो तुम
पूँजीवाद के अभेद्य
दुर्गम किला हो तुम
और