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अनेकान्त/55/2
में विन्ध्य पर्वतमाला थी। (डिक्शनरी ऑफ पालिप्रोपर नेम्स, भाग-2, पृ. 403 एवं प्राड. मौर्य बिहार, पृ. 78)
मगध देश के सीमा विस्तार के सम्बन्ध में शक्ति संगम तन्त्र में इस प्रकार कहा है
कालेश्वरं समारभ्य तप्तकुण्डान्तकं शिवे।
मगधाख्यो कालेश्वर-कालभैरव-नहि दुष्यति।। 3-7-10. अर्थात् कालेश्वर-कालभैरव-वाराणसी से लेकर तप्तकुण्ड-सीताकुण्ड-मुंगेर तक मगध नामक महादेश माना गया है।
हुयान-त्संग के अनुसार, मगध जनपद की मण्डलाकार परिधि 833 मील थी। इसके उत्तर में गंगा नदी, पश्चिम में वाराणसी, पूर्व में हिरण्य पर्वत और दक्षिण में सिंहभूमि वर्तमान थी। ऋग्वेद और महाभारत में मगध को कीकट कहा गया है। शक्ति संगम के अनुसार मगध के दक्षिण में कीकट देश था।
विदेह देश के विस्तार के सम्बन्ध में शक्ति संगम तन्त्र के सुन्दरी खण्ड में इस प्रकार कहा गया है
गण्डकीतीरमारभ्य चम्पारण्यान्तकं शिवे।
विदेहभूः समाख्याता तैरभुक्त्यभिया तु सा।। अर्थात् तीरभक्ति कही जाने वाली विदेहभूमि गण्डकी (गण्डक नदी) के तीर से लेकर चम्पारण की अन्तिम सीमा तक फैली हुई है।
"शक्ति-संगम-तंन्त्र" के ही प्रसंग से "बिहार थ्रो द एजेज" पृ. 55 पर लिखा है- "फ्रॉम द बैन्क ऑफ गण्डक टू द फॉरेस्ट ऑफ चम्पारण द कन्ट्री वाज कॉल्ड, विदेह ऑर तीरभुक्ति, इट वाज बाउन्डेड ऑन ईस्ट, वैस्ट एण्ड साउथ बाई थी बिग रिवर्स, द कोसी, गण्डक एण्ड गंगाज, वाइल द तराई रीजन्स फॉर्मड् इट्स नॉर्दर्न, बाउन्डरी," अर्थात् गण्डक नदी के तट से लेकर चम्पारण पर्यन्त का स्थान विदेह अथवा तीरभुक्ति कहा जाता था। उसके पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में कोसी, गण्डक तथा गंगा-ये तीन बड़ी नदियाँ हैं और हिमालय का तराई क्षेत्र इसके उत्तर की ओर है।
बृहविष्णु पुराण में विदेह के तीरभुक्ति तथा मिथिला आदि बारह नाम