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अनेकान्त/55/2
"अब हम संक्षेप में इस परिणाम पर पहुँचते हैं---- _1. आधुनिक स्थान जिसे क्षत्रियकुण्ड कहा जाता है और जिसे लिच्छुआड़ के पास बताया जाता है, मुंगेर जिला के अन्तर्गत है, महाभारत में इस प्रदेश को एक स्वतंत्र राज्य "मोदगिरि" के नाम से उल्लेख किया गया है, जो कि बाद में अंग देश से मिला दिया गया था अर्थात् प्राचीन ऐतिहासिक युग में यह स्थान विदेह में न होकर अंग देश अथवा मोदगिरि-अन्तर्गत था। इसलिए भगवान की जन्मभूमि यह स्थान नहीं हो सकती।
2. आधुनिक क्षत्रियकुण्ड पर्वत पर है, जबकि प्राचीन क्षत्रियकुण्ड के साथ शास्त्रों में पर्वत का कोई वर्णन नहीं मिलता। वैशाली के आस-पास क्योंकि पहाड़ नहीं है, इसलिए भी वही स्थान भगवान का जन्मस्थान अधिक सम्भव प्रतीत होता है।
3. आधुनिक क्षत्रियकुण्ड की तलहटी में एक नाला बहता है, जो कि गण्डकी नहीं है। गण्डकी नदी आज वैशाली के पास बहती है। ___4. शास्त्रों में क्षत्रियकुण्ड को वैशाली के निकट बताया है, जबकि आधुनिक स्थान के निकट वैशाली नहीं है।
5. विदेह देश तो गंगा के उत्तर में है, जबकि आधुनिक क्षत्रियकुण्ड गंगा के दक्षिण में है।
इससे स्पष्ट है कि भ्रांतिवश लिच्छआड़ के निकट पर्वत के ऊपर के स्थान को क्षत्रियकुण्ड मान लिया गया है। यहाँ भगवान का कोई भी कल्याणक-गर्भ, जन्म और दीक्षा नहीं हुआ।
शास्त्रों के अनुसार हमारी यह सम्मति है कि जो स्थान आजकल बसाढ़ नाम से प्रसिद्ध है, वही प्राचीन वैशाली है। इसी के निकट क्षत्रियकुण्ड ग्राम था, जहाँ भगवान के तीन कल्याणक हुए थे। इसी स्थान के निकट आज भी वणियागाँव, कूमनछपरागाछी और कोल्हुआ मौजूद हैं। आजकल यह क्षत्रियकुण्ड स्थान वासुकुण्ड नाम से प्रसिद्ध है। पुरातत्व विभाग भी वासुकुण्ड को ही प्राचीन क्षत्रियकुण्ड मानता है। यहाँ के स्थानीय लोग भी यही समझते हैं कि