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अनेकान्त/55/1
न्याय विद्या पर उनके गहन अध्ययन की परिचायिका है एवम् विद्यार्थियों के साथ एतद्विषयक विद्वानों के लिये भी उपयोगी है। श्रावकाचार संग्रह (पांच भाग)
पं. श्री हीरालालजी ने श्रावकाचार विषय के विविध आचार्यों के मन्तव्यों के एकत्र संयोजन हेतु तथा श्रावकाचारों के क्रमिक विकास के अध्ययनार्थ शोधार्थियों के सौविध्य हेतु अनेक सरस्वती भण्डारों से खोज-खोज कर एतद्विषयक सामग्री का संकलन कर तथा पुराणों में आगत श्रावकाचार विषयक सामग्री का संयोजनकर एवम् विद्वत्तापूर्ण सम्पादन एवम् अनुवाद के साथ 33 श्रावकाचारों को 5 जिल्दों में प्रकाशन का कार्य किया है।
इसके पूर्व आपके द्वारा वसुनन्दिश्रावकाचार एवम् जैन धर्मामृत का सुन्दर सम्पादन एवम् अनुवाद भा. ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित कराया गया था। वीरोदय महाकाव्य- वीसवीं शताब्दी के मूर्धन्य महाकवि बृहतचतुष्ठयी की रचना जयोदय महाकाव्य के रवयिता ब्र. भूरामल शास्त्री द्वारा रससिद्ध लेखनी से प्रस्तुत वीरोदय महाकाव्य का सुन्दर सम्पादन भी आपकी प्रतिभाद्वारा किया गया है, यद्यपि उक्त ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्राचीन हिन्दी में महाकवि ने स्वयं किया था, पं. जी ने रूपान्तरण के साथ सम्पादन किया एवम् महाकाव्य के नायक भ. महावीर चरित विषयक दिगम्बर एवम् श्वेताम्बर साहित्य का आलोडन कर उसका नवनीत प्रस्तुत ग्रन्थ में किया है।
विशिष्ट बात यह कि प्रस्तावना में ग्रन्थ प्रकाशन काल तक अप्रकाशित महावीर चरित्र विषयक सामग्री का सार भी प्रस्तुत किया जिसमें-असगकवि का वर्धमान चरित, भट्रारक कीर्ति विरचित वीरवर्धमान काव्य, रइधु विरचित - महावीर चरित सिरिहर विरचित-वड्डमाणारउ, कुमुदचन्द्र विरचित-महावीररास, आदि का अध्ययन सार प्रस्तुत किया है। सारांशतः सम्पादक महोदय ने वीरोदय महाकाव्य के वैशिष्ट्य के प्रतिपादन के साथ अपनी विशाल प्रस्तावना में यत्र तत्र उपलब्ध दिगम्बर एवं श्वेताम्बर आचार्य प्रणीत संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश एवम् हिन्दी भाषा निबद्ध महावीर चरितों को तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर जिज्ञासुजगत् पर महउपकार किया है।