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अनेकान्त/55/1
सोना, चांदी, तांबा और जस्ता आदि धातुओं के माप-जोख वाले प्रयोग करते थे। उनका जीवन अत्यंत सुव्यवस्थित था। मोहनजोदड़ो में प्राप्त मुहरों और लेखों के अंकसूचक चिन्ह थे, और हालांकि अभी तक पूर्ण रूप से नहीं पढ़े जा सके है। परन्तु उनमें कहीं-कहीं एक खड़ी पाई या एक के ऊपर एक रखी कई खड़ी पाईयां मिली हैं। ज्ञात हुआ है कि एक से तेरह तक के अंक इन्हीं खड़ी पाईयों द्वारा सूचित किये गए हैं।
यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि 20,30, सैकड़े और अधिक की संख्याओं को लिखने के लिए भी उस समय संकेत थे अथवा नहीं। यद्यपि ऐसे अनेक चिन्ह मिलते हैं जिनके विषय में लोगों का विश्वास है कि वे बड़ी संख्याओं को बतलाते हैं। परन्तु अभी तक उन चिन्हों का सर्वसम्मत् मान पता नहीं चल सका है।
मोहनजोदडो में प्राप्त सामग्री तथा अशोक के अंक-गर्भित अंतलेखों के बीच प्राय: डेढ़ हजार या अधिक वर्षों का अंतराल है। इस अंतराल के काल में अभी तक कोई ऐसा लिखित प्रलेख (स्टेला) नहीं मिला जिसमें अंक चिन्हों का प्रयोग किया गया हो।
मोहनजोदडो के उत्तर में 400 मील पर दयाराम सहानी ने और उनके पश्चात् माधो स्वरूप वत्स ने खुदाई की जो कि हड़प्पा खुदाई के नाम से जानी गई। इन दोनों स्थानों की खुदाई में नाना प्रकार की वस्तुओं के साथ लगभग 3000 मुद्राएं भी निकलीं। जो आज भी गूढाक्षर-वेत्ताओं के लिए समस्या बनी हुई हैं। खुदाई की प्राप्त वस्तुओं से सिद्ध हुआ कि मोहनजोदड़ो एक द्वीप था जहां की सभ्यता का प्रभाव ईरान और ईगक की सभ्यताओं पर पड़ा था। सर जॉन मार्शल तथा मइके और वत्स ने इन सभी चित्रों को तथा संख्याओं को बहुत साफ सुथरे तौर पर छापा है। सिंधु घाटी की सभ्यता प्रायः 4000 वर्ष पुरानी है। जो कि उसका अंतिम काल था। इसमें यदि 5000 और जोड़ दिये जाएं तो हम उस सभ्यता के जन्म के समीप पहुंच सकते हैं। यहां की लिपि में चिन्ह और चित्र दोनों पाए जाते हैं, जो कभी दायें से बायें, कभी बायें से दायें ओर कभी दोनों ओर से लिखे मिलते है। कुछ मुद्राओं में केवल लिपि है कुछ में केवल चित्र है और कुछ में चित्र और लिपि दोनों हैं। मार्शल ने